गांधी और भारतीय समकालीन कला का रचनात्मक अंतर्संबंध
-मिथिलेश श्रीवास्तव
1995 से 1919 के बीच के 25 वर्षों में महात्मा गांधी को केंद्र में रखते हुए लगभग चार बड़ी कलाप्रदर्शनियां दिल्ली की कलादीर्घाओं में आयोजित हुई जिसमें 100 से अधिक कलाकारों ने उनके किसी न किसी रूप, संघर्ष, सत्याग्रह, अहिंसा, सत्य , आध्यात्मिकता, धर्म और धर्मनिरपेक्षता को अमूर्तन, रंग संयोजन, आकृतिमूलकता के माध्यम से चित्रित करने के असाध्य प्रयास में शिरकत किया| गांधी कहते थे उनका जीवन ही उनका संदेश है , तो इतने बड़े संदेश को समझना कोई आसान काम नहीं है लेकिन भारतीय कलाकारों ने इसे समझने की कोशिश की | इन कलाकारों में शामिल कलाकारों की तीन सरणियां बनायी जा सकती है| पहली सरणी उन वेटेरन कलाकारों की है जो गांधी के समय में अपना एक सामाजिक मूल्य बना चुके थे और तत्कालीन कला की दुनिया में उनकी अपनी एक पहचान बन चुकी थी और जिनसे कला-दृष्टि को लेकर गांधी से विमर्श भी हुआ था, जैसे की नंदलाल बोस जो सेवाग्राम में गाँधी से मिले थे और कला पर विमर्श भी किया था और कांग्रेस के अधिवेशनों में पंडाल बनाने का काम किया था | दूसरी सरणी उन कलाकारों की है जो बचपन से किशोरावस्था तक गांधी की महिमा सुनते रहे थे और इत्तेफाकन गांधी को कहीं देख भी लिया था, उदाहरणस्वरूप , भवेश सान्याल जो 1947 में लाहौर से दिल्ली बंटवारे के समय एक विस्थापित के रूप में आये थे और उन्होंने गांधी जी को दिल्ली की भंगी बस्ती में देखा था | गांधी जी से उनकी मुलाकात नहीं हुई थी लेकिन भंगी बस्ती में गाँधी जी कामकाज करते देखा करते थे और चुपचाप उनका रेखाचित्र बनाया करते थे | वे रेखाचित्र आज भी उपलब्ध है | तीसरी सरणी उन कलाकारों का है जो आज़ादी के आस-पास या उसके बाद जन्मे और उनके ज़ेहन में महात्मा गांधी के स्वरुप मौजूद हैं | इस लेख में जिस पहली कला-प्रदर्शनी का जिक्र किया गया है वह 26 सितम्बर - 21 अक्टूबर, 1995 में दिल्ली के मंडी हाउस में स्थित एलटीजी कलादीर्घा में लगायी गई| उस साल दो अक्टूबर, 1915 को महात्मा गांधी का 125 वां जन्मदिन था | मालूम ही है कि उनका जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को हुआ था | दूसरी कला-प्रदर्शनी जिसका हम जिक्र करेंगे पटना के कला संग्रहालय में आयोजि की गयी थी 2017 में जब महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह के 100 साल पुरे हुए थे | प्रदर्शनी का आयोजन कला संग्रहालय के सहयोग से प्रेग्रेंसिव आर्ट गैलरी ने किया था | महात्मा गांधी पर तीसरी कला-प्रदर्शनी उनके 150 वें वर्षगांठ या जन्म -वर्ष प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट गैलरी ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के भारत कला भवन के सहयोग से वाराणसी में आयोजित किया था | इसी मौके पर केंद्रीय ललित कला अकादमी ने रविंद्र भवन में एक कला-प्रदर्शनी का आयोजन किया था जिसमें प्रोग्रेसिव आर्ट गैलरी का गांधी पर आर्ट कलेक्शन को भी शामिल कर लिया गया था | इस मौके पर छापे गए कैटेलॉग के फोरवर्ड में अकेडमी के अध्यक्ष उत्तम पाचरणे ने अपने आर्ट कलेक्शन देकर अकादमी का सहयोग करने के लिए प्रोग्रेसिव आर्ट गैलरी के मालिक आर एन सिंह का धन्यवाद किया है | गांधी के 150 वे जन्म-वर्ष को मोदी सरकार ने बड़े धूमधाम से मनाया था तो जाहिर है और भी गांधी-केंद्रित कला-प्रदर्शनियां आयोजित की गई होगीं लेकिन हम यहां इन्हीं चार कला-प्रदर्शनियों की पड़ताल करेंगे|
मोहनदास करमचंद गांधी या महात्मा गांधी या महात्मा या बापू या आइंस्टाइन का इस पृथ्वी पर हाड़-मांस का चलने वाला इंसान जो आने वाली पीढ़ियों को अविश्वसनीय लगेगा या विंस्टन चर्चिल के शब्दों में जो ब्रिटिश सम्राट के प्रतिनिधि से बराबरी के साथ बात करने वाला अधनंगा फ़क़ीर या सत्य का सतत अन्वेषी या अहिंसा का पुजारी या समाजसुधारक या एक अत्यंत धार्मिक पुरुष जो पाखंड और धार्मिक कर्मकांडों से पृथक या निर्भय निडर सत्याग्रही जो सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए अपने समूचे देशवासी को अपने रास्ते चलने की प्रेरणा देने वाला या विश्व के विशाल शक्तिशाली साम्राज्य को अपनी आध्यतमिक शक्ति से चुनौती देने वाल गुलाम देश का उद्धार करनेवाला | आखिर वह कौन था जिसके एक आह्वान पर यह देश उसके पीछे-पीछे उमड़ पड़ता था और ब्रिटिश साम्राज्य की चूलें हिलने लगती थीं | कानून तोड़ता था, गुनाह कबूलता था, सज़ा की मांग करता था, सज़ा काटता था और फिर कानून तोड़ता था| यह कौन था, कोई करिश्माई ; यह कौन था ; यह एक अत्यत आधुनिक विचार सम्पन आध्यात्मिक ईश्वर का साथ कभी नहीं छोड़ने वाला और लोगों का भरोसेमंद | सांप्रदायिकता के पक्ष में निडरता के साथ खड़ा होने वाला| दुनिया के किसी कोने में हो रहे अन्याय की मुख़ालफ़त करने वाला | भारतीय महात्मा गांधी के सत्य, अहिंसा और उनके सामाजिक संघर्ष पर अगाध भरोसा करते थे, करते हैं | गांधी एक तरह से हमारे समकालीन हैं क्योंकि हम विश्वास करते हैं कि वह आदमी इस धरती पर चला था और उनका जीवन हम अपने लिए आदर्श और अनुकरणीय मानते हैं | हम सबसे पहले गांधी के व्यक्तित्व के किस पक्ष से प्रभावित होते है- उनके सत्य के संधान , साहस , अहिंसा और अपने लोगों की फिक्र | इन्हीं सब अवयवों से उनकी आध्यात्मिकता स्वरूप लेती थी और उनको काम करने की प्रेरणा देती थी | महात्मा गांधी अपने जीवन पर पर्दा नहीं डालते थे | उनके दैनिक जीवन की कुछ उपयोगी सामग्रियां ऐसी हैं जो उनके जीवन को प्रतीकात्मकता प्रदान करती हैं| मसलन, आश्रम-जीवन, चरखा , चप्पलें , चश्मा, लाठी , धोती , तीन बंदर, निश्छल और मानवीय हंसी, इत्यादि | गांधी को इन प्रतीकों में तलाशा जा सकता है और इन प्रतीकों के माध्यम से गाँधी के सकल व्यक्तित्व को कैनवास पर उतारा जा सकता है लेकिन गांधी को समग्रता में कला में समाहित करने के लिए एक नयी रेखा एक नया रेखांकन एक नया रंग विधान एक नयी कला-सामग्री की दरकार होगी | गांधी प्रचलित रंगों, रेखाओं, कैनवासों में नहीं समां सकते | गांधी को किसी भी प्रचलित और लोकप्रिय कला -आंदोललन से चित्रित करना भी असभव है | गांधी एक तरह से हमारे समकालीन हैं इसलिए उनको कला में चित्रित करने के लिए एक ऐसी कला-प्रविधि विकसित करनी पड़ेगी जिसमें हम गांधी समग्रता में देख सकें, महसूस कर सकें | मदर टेरेसा को चित्रित करने का एक कला फॉर्म मकबूल फ़िदा हुसैन ने काफी मशक्क्त के बाद विकसित किया और मदर टेरेसा को चित्रित किया | हुसैन के मदर टेरेसा श्रृंखला के चित्रों को देखते ही मदर टेरेसा की मानवीयता, सेवा भाव, त्याग महसूस होने लगता है | मदर टेरेसा को पेंट करने के लिए फॉर्म की तलाश में हुसैन ने दुनिया की अधिकांश कलादीर्घाओं का खाक छाना था तब कहीं जाकर हुसैन को वह फॉर्म मिला जिसमेँ मदर टेरेसा को चित्रित किया; गांधी को भी चित्रित करने के पहले फॉर्म की तलाश करनी चाहिए ;रंगों का चुनाव भी करना चाहिए | वैचारिक और कला-संगत संघर्ष हर कलाकार के लिए शायद अनिवार्य हो सकता है | गांधी की अपनी कला-दृष्टि क्या थी? उनकी कला-दृष्टि को समझने से भी गांधी को चित्रित करने में मदद मिल सकती है; गांधी को चित्रित करने का उपयुक्त फॉर्म हासिल हो सकता है | ऊपर वर्णित तीसरी सरणी के कलाकारों को फॉर्म तलाशने की जरुरत है | कला के लिए कला का कोई मतलब नहीं है, महात्मा गांधी मानते थे | समकालीन कलाकारों को ऐसा नहीं लगना चाहिए कि उनके पास जो कला-सामग्री उपलब्ध है उसीसे वह कुछ भी बना लेगें | इस मानसिकता से ग्रसित कलाकार गांधी को पेंट कर ही नहीं सकते हैं| महात्मा गांधी पर शोध करने वालों का कहना है कि गांधी जी ने कला में कभी गहरी रुचि नहीं दिखायी | इस बात के ठोस संकेत नहीं मिलते हैं | लेकिन 1936 में उन्होंने अपनी कला-दृष्टि की परख की कोशिश की जब उन्होंने अखिल भारतीय कांग्रेस के फैज़पुर अधिवेशन में ग्रामीण कला और क्राफ्ट की एक कला-प्रदर्शनी लगाने की इच्छा प्रकट की | उन्होंने साफ़ किया था कि कला-प्रदर्शनी वैसी होगी जैसी कि उसकी परिकल्पना उनके मन में है | गांधी ने कला-प्रदर्शनी की अभिकल्पना की थी और उसे साकार किया था प्रसिद्ध भारतीय कलाकार नन्दलाल बोस ने | इस बात का प्रमाण है कि गांधी जी ने कला-प्रदर्शनी को साकार करने के लिए नन्दलाल बोस से सेवाग्राम आश्रम में आने का आग्रह किया जहां गांधी जी उनसे कला की अपनी समझ साझा करेंगे | ऐसा ही हुआ | नन्दलाल बोस सेवाग्राम आश्रम आए और उन दोनों ने कला को लेकर विस्तार से विमर्श किया | उनके बीच विस्तार से क्या बात-चीत हुई इसका विवरण अभी (?) कहीं उपलब्ध नहीं है लेकिन एक उम्मीद है कि महादेव देसाई जो कि गांधी जी की दिनभर की बातों को अपनी डायरी में दर्ज़ किया करते थे, शायद गांधी जी ने नन्दलाल बोस से जो कहा होगा दर्ज़ किया हो अगर देसाई की 1936 और उसके बाद की डायरी प्रकाशित हुई हो | गांधी जी और नन्दलाल बोस के बीच बातचीत के समय महादेव देसाई उपस्थित थे | यह बात हम साफ़ तौर पर जानते हैं कि गांधी जी ने नन्दलाल बोस से स्पष्ट कर दिया था कि अधिवेशन के दौरान जो कला-प्रदर्शनी लगेगी उसमें स्थानीय कला-सामग्रियों का ही इस्तेमाल होना चाहिए इसलिए नन्दलाल बोस से उन्होंने साफ-साफ़ कहा था कि शांतिनिकेतन से महंगी कलाकृतियों को नहीं लाएं और कांग्रेस पंडाल की सजावट के लिए फैज़पुर में स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्रियों का इस्तेमाल करें | पंडाल की सजावट ग्रामीण कला प्रदर्शनी जैसा ही दिखना चाहिए | फैज़पुर कांग्रेस अधिवेशन का उद्घाटन करते समय गांधी जी ने कहा था कि संपूर्ण तिलकनगर कला-प्रदर्शनी सरीखा है | उस कला-प्रदर्शनी को ग्रामीण-कला का बेहतरीन नमूना कहा था | नन्दलाल बोस गांधी के कला के सपने को साकार करने में सफल हुए होंगे | फैज़पुर पंडाल का विडियो प्रमाण नहीं है, न कोई फोटोग्राफ़ उपलब्ध है लेकिन गाँधी जी का ऐसा कहना ही प्रमाण है कि नन्दलाल बोस गांधी की कला-चिंतन को साकार कर पाए होंगे, गांधी का कला के बारे में दो विचार हमें साफ़ तौर पर दिखाई देते हैं - महंगी कला-सामग्रियों का निषेध, स्थानीय कला-सामग्रियों का उपयोग, कला का संबंध ग्रामीण सपनों के अनुरूप होना चाहिए | इन बिंदुओं का उपयोग हम 1995 से 2020 के बीच गांधी गाँधी-केंद्रित कला-प्रदर्शनियों के मूल्यांकन में अवश्य करेंगे | फैज़पुर कांग्रेस अधिवेशन के इस कला-प्रयोग पर गांधी के उद्बोधन ने कला के सारे आन्दोलनों को एक पल में धूमिल कर दिया था | उनके राजनीतिक गुरु गोपालकृष्ण गोखले ने गांधी को पूरे हिंदुस्तान को घूम -घूम कर देखने की सलाह दी थी और महात्मा गांधी ने इस देश के गांवों को देखा था, लोगों को देखा था , गरीबी देखी थी, फ़कीरी देखी थी | ग़रीबी और फ़कीरी देखते-देखते वे खुद अर्द्ध-वस्त्र अर्ध-नग्न फ़क़ीर हो गए थे स्व-त्याग से, स्वचेतना से जिस पर चर्चिल ने फ़िकरा कसा था कि एक फ़क़ीर ब्रिटिश हुक़ूमत से बराबरी करने चला आता है | आइंस्टाइन ने सच्ची श्रद्धांजलि के शब्द कहे थे कि आनेवाली पीढ़ियां शायद ही इस फ़क़ीर के इस धरती पर चलने का विश्वास करे | 1938 में हरिपुरा में अखिल भारतीय कांग्रेस का अधिवेशन हुआ | वहां भी कला-प्रदर्शनी लगायी गयी उन्ही कला-सिंद्धांतों पर जिन पर फैज़पुर में कला-प्रदर्शनी लगी थी | हरिपुरा में गाँधी जी ने कहा, " आप यहां अनेक स्थलों पर कला की उपस्थिति देख सकते हैं | मैं इस कला की व्यख्या नहीं करुंगा | यह कला खुद आपकी आंखें अपनी ओर खीचेंगी |" तो कला वही है जो आपको देखने के लिए प्रेरित करे, मज़बूर कर दे | उन्होंने आगे कहा था , " चीज़ों के अंतर और वाह्य सौंदर्य को महसूस कराने का जरिया कला है |" फैज़पुर और हरिपुर के कांग्रेस अधिवेशवनों की कला-प्रदर्शनियां भारतीय दस्तकारी की विविध जीवंत परंपराओं को एक जगह पेश कर दिया गया था जिसमें राष्ट्रीयता की भावना भी प्रतीकात्मक रूप से अंतर्निहित थी | हरिपुर में नंदलाल बोस के साथ रविशंकर रावल और कनुभाई देसाई भी थे | हरिपुर पंडाल के पोस्टर्स के नन्दलाल बोस के रेखांकन उपलब्ध हैं | इसी प्रकार कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में नन्दलाल बोस और जैमिनी रॉय ने मिलकर पंडाल के लिए म्यूरल बनाये थे | उन म्यूरलों के भी फोटोग्राफ्स उपलब्द्ध नहीं हैं | लेकिन जो बात गाँधी जी ने अपने अहिंसा के प्रयोगों के बारे में कहा था वही उनकी कला सम्मत विचारों पर भी लागू होता है | 'अहिंसा के प्रति लोग उदासीन थे, उसके बाद उसका उपहास किया, आरोप लगाए, दमन का रवैया भी अपनाया लेकिन अंततः अहिंसा का आदर करना सीखा | '
1930 में येरवदा मंदिर से काशीनाथ त्रिवेदी को लिखे एक पत्र में गांधी ने लिखा था, कोई भी गतिविधि जिसमें लोग शिरकत नहीं करते, कला नहीं है , बल्कि आत्ममग्नता है | गांधी एक दूसरे पत्र में लिखते हैं , 'चित्रकला खामोश संगीत है |' उनका मानना है कि धर्म और कला का उद्देश्य मनुष्य का नैतिक और आध्यात्मिक उन्नयन करना है | गांधी मानते हैं कि उनके जीवन में सचमुच बहुत कला है लेकिन आप वहां कला नहीं देख सकते जिसे आप मेरे ऊपर कला कहते हैं |
15 अगस्त, 1947 ब्रितानी गुलामी से आज़ादी का दिन था; एक आज़ाद हिंदुस्तान का उदय था लेकिन वह एक समय-बिंदु था जहां से बंटवारे से जनित विनाश की लीला का प्रारंभ था | भारत और पाकिस्तान के रूप में विभाजन का समय था | एक कौम का दूसरे कौम पर अविश्वास का समय था | धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत पर ख़तरे का समय था | हिंसा के तांडव का समय था जिस हिंसा के ख़िलाफ़ आजीवन गांधी संघर्ष करते रहे| आज़ादी के समय से भारत और पाकिस्तान के बीच कई युद्ध हुए, नक्सलवादी हिंसा, पंजाब का उग्रवादी हिंसा , जम्मू और कश्मीर का आतंकवादी हिंसा, आपातकाल के समय की ज्यादतियां, और प्राकृतिक आपदाओं की हिंसा | यह देश इन हिंसाओं को सहते हुए अपना निर्माण करता रहा और गांधीवाद को भी याद करता रहा |
गांधी के 125 वीं वर्षगांठ पर एलटीजी आर्ट गैलरी ने 1995 में गांधी-केंद्रित कला प्रदर्शनी का आयोजन किया था जिसमें पचीस भारतीय कलाकारों की चित्रकृतियां शामिल की गयी थीं | कहा गया कि' हम इसमें गांधी को देखें |' गांधी के जीवन में जो भरपूर कला थी उनपर बनी कलाकृतियों में उनके जीवन की कला न्यूनतम दिखायी देती है | इन पचीस कलाकारों में शामिल थे- अनुपम सूद, अर्पणा कौर , भवेश सान्याल, धीरज चौधरी, एफ एन सूजा, जी आर संतोष, गोपी गजवानी, गुलाम एम शेख़, जतिन दास , कृशन खन्ना, लक्मण पई , माधवी पारेख, नागजी पटेल, मनु पारेख, नलिनी मलानी, नलिनी शेख, ओम प्रकाश, पुलक बिस्वाश, शमशाद, संजय भट्टाचार्य्या, सुनील दास, शमी मेंदीरत्ता, उमेश वर्मा, विजेंदर शर्मा, विवान सुंदरम | अर्पणा कौर की कला सूफ़िआना है तो गांधी को चित्रित करना उनके लिए मुश्किल नहीं है क्योंकि सूफ़ीवाद और गांधी काफी हद तक पर्यायवाची हैं | गांधी का वही रूप यहां दिखाई देता है जो अहिंसक भारतीय के मन में गांधी की मूरत बसा है | लेकिन इस चित्रकृति में कस्तूरबा की उपस्थिति एक ममतामयी स्त्रीशक्ति की उपस्थिति के समान है| अर्पणा का सूफ़िआना मिज़ाज़ और अंदाज़ गांधी कला के मुआफ़िक है| अनुपम सूद अहिंसा और शांति का अन्वेषण करने की कोशिश करते हैं जलरंगों के माध्यम से | भवेश सान्याल की रेखाएं ऐसी हैं जैसे कि सान्याल ने गांधी के लिए ही इन रेखाओं का अविष्कार किया हो | सूत कातते गांधी अर्थात गांधी के हाथ में चरखा, शांति और सौहार्द का प्रतीक अर्थात गांधी, चरखा, शांति, सद्भाव| एक अहिंसक का अहिंसक औजार या हथियार | पराश्रित को स्वाश्रित बनाने का उपक्रम | इसमें वह गांधी जो वे थे दिख रहे हैं | भवेश सान्याल ने लिखा है, वे 1947 में बतौर रिफ्यूजी लाहौर से दिल्ली आए | उन्होंने गाँधी जी को भंगी कॉलोनी में देखा था | वे गांधीजी से मिले तो नहीं लेकिन क़रीब से उन्हें देखा था | गांधी काम करते थे और सान्याल उनको चुपचाप देखा करते और उनका जल्दी-जल्दी रेखांकन बनाते | इस रेखांकन पर सान्याल का 1947 का हस्ताक्षर है | एक बात तो है कि सान्याल ने महंगे कला-सामग्री का इस्तेमाल गांधी को चित्रित करने के लिए नहीं किया बल्कि कागज और पेंसिल जो उस समय में उनके पास रहा होगा उसीसे रेखांकन बनाया | अगर सान्याल ने गांधी को अपने रेखांकन दिखाया होता तो गांधी को बहुत पसंद आता | धीरज चौधुरी गांधी को महसूस करते हैं और बुद्ध और गांधी के प्रचलित प्रतीकों से एक आकृतिमूलक संयोजन प्रस्तुत करते हैं जो शांति, अहिंसा और द्वेषरहित समाज का भाव पैदा करता है | एफ एन सूजा मैगज़ीन कागज पर रसायन के प्रयोग से क्रॉस बनाते हैं और इसको नाम देते हैं' रेड क्रुसिफिकेशन | ' गोपी गजवानी का विषय है 'आज़ादी' जिसे चित्रित करने के लिए गांधी का मास्क चेहरा दिखते हैं लेकिन उनकी लाठी प्रमुखता से दिखाई पड़ती है| लाठी गांधी के व्यक्तित्व का जरुरी हिस्सा है, एक सहारा, चलते रहने में सक्षम बनाये रखने की उम्मीद | जी आर संतोष उपवास करते ध्यानमग्न गांधी को चित्रित किया है | जतिन दास 'सहारा' शीर्षक से दो औरतों के सहारे चलते हुए गांधी को चित्रित किया है| कृष्ण खन्ना सह-अस्तित्व को रंगों के सह- अस्तित्व के माध्यम से चित्रित करते हैं| गांधी का यह दर्शनशास्त्रीय ट्रीटमेंट है | लक्मण पई एक अमूर्त आकृति बनाते हैं और नैतिक और मानसिक सामर्थ्य को दर्शाते हैं | मनु पारेख एक भावाकुल गांधी चित्रित करते हैं जो विवश है हिंसात्मक होते समाज को देख कर | माधवी पारेख गांधी के मास अपील को चित्रित कराती हैं | नागजी पटेल महात्मा का स्मारक बनाते हैं | नलिनी मलानी के 'हिंसा' के दृश्य को देख कर प्रेक्षक तीव्रता से गांधी को याद करता है| नीलिमा शेख , ओम प्रकाश , पुलक बिश्वास और शमशाद के चित्रों में गांधी का आभास है | संजय भट्टाचार्य्या , सुनील दास, शमी मेंदीरत्ता और उमेश वर्मा की कला में कोई न कोई जीवन मूल्य है जो हमें गांधी से जोड़ता है| गुलाम मोहम्मद शेख़ सर्व धर्म सम्भाव को चित्रित करते हैं | विजेंदर शर्मा का कैनवस 'गांधी कभी नहीं मरता' हमें एक दूसरे धरातल पर ले जाता है और यही बात विवान सुंदरम की कलाकृति के बारे में कही जा सकती है |
प्रोग्रेसिव आर्ट गैलरी के संस्थापक-निर्देशक और कला-संयोजक आर एन सिंह ने महात्मा गांधी पर एक कला-प्रदर्शनी 2017 में बिहार संग्राहालय , पटना के लिए संयोजन -संकलन किया जिसका नाम दिया था -' गांधी कलाकारों की नज़र में | '; प्रदर्शनी पटना के बिहार संग्रहालय में लगायी गयी और जाहिर है कि अवसर महात्मा गांधी के चंपारण संघर्ष को याद करना था | उस कला-प्रदर्शनी पर बात करने के पहले उस महत्वकांक्षी कला योजना के प्रकल्पक आर एन सिंह और उनकी प्रोग्रेसिव आर्ट गैलरी के बारे में बात होनी चाहिए| आर एन सिंह पूर्वी उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के एक किसान परिवार से आते हैं | अपनी जवानी के दिनों में दिल्ली की गलियों की ख़ाक छानने दिल्ली आ गए थे और एक दिन कनाट प्लेस स्थित धूमिमल आर्ट गैलरी पहुंच गए | वे बतलाते हैं कि वहां मन लगा के काम किया कुछ वर्षों तक जिसका लाभ यह मिला कि दीवार पर कलाकृति कैसे हैंग की जाती है इसका उनको कलात्मक अनुभव हुआ | कलाकृति को कैसे हैंग की जाती है, यह भी एक कला है जिसे कलादीर्घा में काम करने वाले श्रमिक, कलादीर्घा के मालिक और कलाकारों को भी आना चाहिए | कला में 'स्पेस' की समझ भी मायने रखती है | कलादीर्घा में प्रकाश-व्यवस्था का महत्व रंगमंच जैसा है | कलाकृति पर पड़ने वाली किरण का कोण भी महत्वपूर्ण है | राम नवल सिंह ने इन सारी बारीकियों को धूमिमल कलादीर्घा में काम करते हुए सीखा,समझा और अनुभव किया | धूमिमल कलादीर्घा के कला-संग्रहालय के माध्यम से आधुनिक मास्टर कलाकारों की कलाकृतियों से परिचित हुए | धूमिमल कलादीर्घा में समकालीन कलाकारों की आवाजाही लगी रहती थी तो उन लोगों से गहरी दोस्ती हुई | कई वर्षों तक राम नवल सिंह का संघर्ष धूमिमल कलादीर्घा में चलता रहा बल्कि यह कहना बेहतर होगा कि राम नवल सिंह की कला-स्कूलिंग धूमिमल कलादीर्घा में ही हुई | इस बात का प्रमाण यह है कि धूमिमल कलादीर्घा के तत्कालीन मालिक इनसे बेहद प्रसन्न रहते और शायद उन्हीं के आशीर्वाद और उनकी प्रेरणा से सिंह कलादीर्घा के व्यवसाय में आगे चल कर स्वतंत्र रूप से आए | याद आता है कि सिंह ने दिल्ली के वसंत विहार में शाहजहां कलादीर्घा के नाम से कलादीर्घा का शुभारंभ किया था | कलाकारों, कला-प्रशंसकों, कला-क्रेताओं और कला-बाज़ार का केंद्र बन गया था शाहजहां कलादीर्घा | मशहूर प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप के आर्टिस्टों के समर्थन और प्रेरणा से नवल किशोर सिंह ने प्रोग्रेसिव आर्ट गैलरी की स्थापना की | प्रोग्रेसिव आर्ट गैलरी की शाखाएं विदेशों में भी हैं और उनके बेटे हर्ष वर्धन सिंह कलादीर्घा की गतिविधियों का संचालन करते हैं |
महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे थे | दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह के उनके प्रयोग मशहूर हुए और उन प्रयोगों की सफलता के बारे में जानकर भारतियों के दिल में उम्मीद की किरण जगने लगी थी | बिहार के चंपारण जिले के किसान अंग्रेज़ों के जुल्म से कुचले हुए थे | किसानों से जबरन नील की खेती कराई जाती और मनमाने ढंग से उनसे कर और लगान की उगाही होती | प्रताड़ित किसानों में से एक ने महात्मा गाँधी को चंपारण आने और उनकी दशा देखने का आग्रह किया | महात्मा गांधी 1917 में चम्पारण गए और सत्याग्रह किया | सत्याग्राह सफल रहा इस अर्थ में कि किसानों के जीवन में सुधार हुआ| महात्मा गांधी के सत्याग्रह जीवन की वह एतिहासिक घटना थी | जाहिर है क़िताबों में उस घटना की पढाई कराई ही जाती है ; उसके सौ साल होने पर विशेष आयोजन भी होने चाहिए | आर एन सिंह कला पारखी होने के साथ साथ समय पारखी भी हैं | गांधी के चंपारण यात्रा के सौ साल होने पर बिहार संग्रहालय के न्योते पर गांधी केंद्रित एक बड़ी कला-प्रदर्शनी का अभिकल्पन नवल किशोर सिंह ने 2017 में किया | उस प्रदर्शनी का नाम दिया गया 'गांधी : कलाकारों की नजर से |' गांधी को अपनी नज़र से देखने और चित्रित करने की कलाकारों को एक तरह से पूरी छूट मिल गयी | गांधी एक कलाकार के लिए बहुत जटिल चरित्र हैं | गांधी को चित्रित करना खेल नहीं हो सकता | गांधी खुद कलाकार नहीं थे लेकिन उनकी अपनी दार्शनिक कलादृष्टि थी | गांधी के बहुआयामी व्यक्तित्व को समझे और महसूस किए बगैर उनको कला का विषय बनाना शायद एक पाखण्ड जैसा लग सकता है | गांधी के सत्य की अवधारणा ही कला की बुनियादी शर्तों पर आधारित है | सत्य के अनगिनत शेड्स हैं, असीमित कैनवास है | गांधी ने कहा भी है कि जीवन सभी कलाओं से बड़ा है ; वह व्यक्ति सबसे बड़ा कलाकार है जिसका जीवन परफेक्शन के क़रीब है | कला कला के लिए जैसी अवधारणा में महात्मा की कोई रूचि नहीं थी | उस प्रदर्शनी में 40 कलाकारों की कलाकृतियां सिंह ने शामिल की थी | मास्टर्स कलाकारों की कलाकृतियां महात्मा की जीवन दृष्टि को रूपायित करती हैं जबकि नए कलाकारों की कलाकृतियां 'कला कला के लिए ' सरणी में आएंगी | नंदलाल बोस गांधी के समकालीन थे| महात्मा गांधी के निमंत्रण पर सेवाग्राम गए जहां उन दोनों के बीच कला पर बाते हुई थीं | उस बातचीत का व्योरा तो नहीं मिल सका है लेकिन इतना मालूम है कि गांधी जी ने नन्दलाल बोस से फैज़पुर , हरिपुर इत्यादि कांग्रेस के अधिवेशनों में कला-प्रदर्शनियां लगाने का आग्रह किया था | कैनवस पर रेप्लिका माध्यम में नंदलाल बोस का 1930 का बनाया गांधी की चित्रकृति शामिल है | गांधी के पूरे व्यक्तित्व को नन्दलाल बोस ने चित्रित किया -दमन, हिंसा और अत्याचार के विरोध में चलता हुआ एक आदमी | यह चित्र 12. 4. 1930 की है | शीर्षक 'गांधी मार्च '; माध्यम; कैनवस पर रेप्लिका | रामकिंकर बैज ने पॉलिएस्टर रेसिन माध्यम में गाँधी का मूर्तिशिल्प बनाया ; शीर्षक है गांधी | 19" ऊँची पॉलिएस्टर रेसिन की ठोसपन में गाँधी के व्यक्तित्व की मज़बूती उभर कर आ गयी है | जो काम नन्दलाल बोस ने कैनवस पर 'गाँधी मार्च ' के माध्यम से किया है वही काम राम किंकर बैज ने पॉलिएस्टर रेसिन के मूर्तिशिल्प से किया है | इनकी कलाकृतियों से गांधी की आध्यात्मिक शक्ति निखर आती है | जैमिनी रॉय का कैनवस 'रबीन्द्रनाथ टैगोर के साथ गांधी' उन दोनों के सहयात्री होने की याद दिलाता है | जैमिनी रॉय की यह कृति ऐतिहासिक है | जैमिनी राय नन्दलाल बोस के साथ कांग्रेस अधिवेशनों में कला-मेला लगाने में सहयोग करने गए थे | के जी सुब्रमण्यन के गांधी विचारमग्न दिखायी देते हैं , किसी अगली जनकार्यवाही के बारे में सोचते हुए | एम एफ हुसैन के गाँधी एकदम अलग हैं , रंग-संयोजन अलग, प्रतीकात्मकता अलग | हुसैन के कैनवस पर गांधी के अनेक रूपों की कल्पना की जा सकती है | एस एच रज़ा के अमूर्तन में गाँधी के दर्शन का दर्शन किया जा सकता है | रज़ा की अपनी विशिष्ट कला-शैली है -केंद्र में बिंदु, सकेंद्रित वृतों से घिरा हुआ, एक ख़ास रंग-संयोजन के साथ | अकबर पदमसी के गांधी में एक ऐसा साधारण मनुष्य है जिसकी आध्यात्मिक ऊर्जा अथाह है |प्रमोद गणपत्ये का माध्यम कैनवस पर तैलीय रंग है, आकार भी बड़ा है -40" x 30"| शीर्षक:पदचिन्ह| एक जोड़ी चप्पल और सूर्यास्त के समय में क्षितिज का रंग| रंग-संयोजन आकर्षक और आध्यात्मिक है| इसमें हम गांधी के व्यक्तित्व को महसूस कर सकते हैं| विजय कौशिक का माध्यम पेंटेड कास्ट ग्लास है और वे गांधी की कई जानी-पहचानी चीजों का अपनी कलाकृति में इस्तेमाल करते हैं, जैसे छड़ी, छड़ी को कसकर पकड़ी हुई उनकी मुट्ठी,चश्मा मस्ज़िदों के गोलगुंबज और भी कई तरह की चीज़ें| विजय कौशिक की अमूर्तन में गांधी का दर्शन| यूसुफ भोपाल के जानेमाने कलाकार हैं| एक समय में उनकी धमक कला की दुनिया में काफी सुनाई देती थी | उनका माध्यम कैनवस पर एक्रेलिक रंगों और स्याही है | कैनवास का आकार बड़ा है 77" x 91"| कैनवस के आकार का कला में बड़ा महत्व है | आकार से कलाकार की क़ाबलियत झलकती है; गांधी तो हैं ही| सैम का का माध्यम कागज और स्याही महत्वपूर्ण है; मनुष्यता का वृक्ष और सिक्के में क़ैद गांधी के साथ आधुनिक भारत में हुए व्यवहार पर वक्तव्य है | वुड-कट प्रिंट माध्यम में श्याम शर्मा ने गाँधी के भारत को चित्रित किया है| तैलीय रंगों में मनीष पुष्कले ने कैनवस पर राजघाट पर विखरे पत्थरों को सजाया है| मनीष अलग अंदाज में गांधी को याद करते हैं | दिप्तो नारायण चटर्जी के चित्रों में गांधी और शेर आमने-सामने हैं| शेर शायद ताकत का प्रतीक है,ताकतवर ब्रिटिश सम्राज्य का प्रतीक है या शायद गांधी की आध्यात्मिक शक्ति दिखाने की कोशिश है | बीरेंद्र पाणी , धर्मेंद्र राठौर, राजेश श्रीवास्तव की कलाकृतियों में गाँधी को समझने की अच्छी कोशिश हुई है| सीरज सक्सेना का सिरेमिक रिलीफ एक संयोजन है | उनकी एक कलाकृति कागज़ पर मिक्स्ड मीडिया में है| कृष्ण दुरिसेट्टी की कलाकृति शुकुन देने वाली है | एक स्त्री की गोद में शांत-क्लांत लेटे हुए गांधी| प्रतुल कुमार दास उड़िया हैं और दिल्ली में रहते हुए उनकी कला में स्थानीयता दिखती रहे है| अपने युवा दिनों में ही वे एक स्थापित कलाकार हो चुके थे| कैनवस पर ऐक्रेलिक में 'दर्पण में प्रतिबिंब' गांधी पर अलग हटकर कलाकृति है| चारोंतरफ अंधकार और उस अंधकार को भेदते हुए लाठी के सहारे चलते गांधी| अनंत मिश्र और प्रशांत कलिता की कलाकृतियों को गांधी से जोड़ कर देखा जा सकता है | मुकेश शर्मा की कलाकृतियों में गांधी प्रतीकों में दिखाई देते हैं | फणीन्द्र नाथ चतुर्वेदी , सूरज कुमार काशी, मनीष रंजन जेना, भुनेश्वर भास्कर, दीपक टंडन, बी सी बोनिआ, मनोज मोहन्ती,सुनान्दो बसु, अरुणा तिवारी, विजय कुमार वंश, प्रिंस चांद, नवकाश, अतुल सिन्हा के चित्रों में गांधी के विभिन्न आयाम दिखते हैं| राजेंद्र कापसे का कैनवस ' राजनीति के चेहरे' भी गांधी के बरक्स समकालीन राजनीति की अशुद्धता की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करता है | सत्य विजय सिंह, सोनम छपरना, गुरमीत मारवाह की चित्रकृतियों के गांधी के प्रचलित बिंब हैं| अर्चना सिन्हा का फाइबर-ग्लास का मूर्तिशिल्प 'कस्तूरबा का साथ गांधी का हाथ' प्रसंशनीय है | जांता, डंडा और मुट्ठी | अच्छा संयोजन | जांता शायद कस्तूरबा का प्रतीक है; डंडा और मुट्ठी गाँधी का| शायद ऐसी कलाकृति फाइबर माध्यम में बेहतर बनी है| मनोज कुमार बच्चन और मीनाक्षी झा बैनर्जी की कलाकृतियां उल्लेखनीय हैं | गांधी के प्रचलित प्रतीकों जैसे लाठी, चश्मा , नीला रंग, तीन बंदर, चरखा, खड़ाऊं, चप्पल इत्यादि से बनायीं गयी कुछ कलाकृतियां अपूर्ण और अपरिपक्व लगती हैं| गांधी के बारे में कोई स्टेटमेंट नहीं दे पाती हैं ; उनके चंपारण प्रवास की कोई कथा भी नहीं कह पातीं ; 2017 के बिहार पर भी कोई स्टेटमेंट नहीं बना पातीं | उस कला-प्रदर्शनी की यह आंशिक असफलता ही कही जाएगी लेकिन एक बात रेखांकित करने लायक यह है कि चंपारण सत्याग्रह के सौ साल पूरे होने के बहाने भारतीय कलाकारों ने गांधी को शिद्दत से याद किया है| गांधी को कला के माध्यम से श्रद्धांजलि आयोजित करने का बड़ा उपक्रम राम नवल सिंह और उनकी प्रोग्रेसिव आर्ट गैलरी और बिहार संग्रहालय ने 2017 में किया | इसके लिए राम नवल सिंह के प्रति हमें कृतज्ञ होना चाहिए और उन्हें बधाई भी देना चाहिए|
राम नवल सिंह और उनकी प्रोग्रेसिव आर्ट गैलरी ने बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के भारत कला भवन के साथ मिलकर वाराणसी में गाँधी जी के 150 वीं जन्मदिन पर एक कला प्रदर्शनी का आयोजन किया | इस प्रदर्शनी की संकल्पना और क्यूरेशन प्रोग्रेसिव आर्ट गैलरी के मालिक राम नवल सिंह ने किया | विदित है कि वर्ष 2019-20 गांधी जी के 150 वीं जन्म-वर्ष के रूप में देशभर में मनाया गया, ज्यातर सरकारी स्तर पर | राम नवल सिंह अपने तई अपनी निजी कलादीर्घा की ओर से इतने बड़े श्रद्धांजलि कला-प्रदर्शनी वाराणसी में आयोजित किया | चित्रकला और मूर्तिशिल्प की इस समूह-प्रदर्शनी को बिहार संग्रहालय में आयोजित चंपारण प्रदर्शनी के तर्ज पर इस प्रदर्शनी का नाम भी दिया गया ' 150 वर्ष गाँधी के: कलाकारों की नज़र से | ' बिहार संग्रहालय की कला-प्रदर्शनी में शामिल कई कलाकारों को इस प्रदर्शनी में भी शामिल किया गया जैसे, एम एफ हुसैन, एस एच रजा इत्यादि | गांधी- केंद्रित वाराणसी कला-प्रदर्शनी में कुल 78 कलाकारों की कलाकृतियां शामिल की गयीं जिनमें से लगभग 38 कलाकारों की वही कलाकृतियां वाराणसी की प्रदर्शनी में शामिल की गयीं जो चंपारण सत्याग्रह के उपलक्ष्य में 2017 में पटना संग्रहालय में लगायी गयी| 38 नए कलाकारों की कलाकृतियां शामिल की गयीं | वेटरन कलाकारों के साथ इस बार रामकुमार को भी शामिल कर लिया गया |रामकुमार अमूर्तन कला के वेटेरन है लेकिन गांधी को पेंट करते समय वे अमूर्तनता में आकृतिमूलकता समाहित करते हैं| गांधी का चेहरा उभर कर आ जाता है| गांधी को पेंट करने का यह परफेक्ट फॉर्म है | निकिता देव की कला में बहुत गहराई नहीं है ; उनकी चित्रकृति गांधी से मेल खाती है क्योंकि इसमेँ चरखा है, लाठी है, और चित्रकृति का शीर्षक है 'चरखा | ' इस कला-प्रदर्शनी में बिहार के कई कलाकारों को शामिल किया गया है जैसे, आनंद कुमार, अनंत मिश्रा,अनिल बाल , दिलीप कुमार शर्मा, नरेंद्र पाल सिंह , अजय नारायण,राजेश चांद,रवींद्र के दास,सचिन्द्र नाथ झा,सुरजीत के पोद्दार, उमेश कुमार| आनंद कुमार ने कॉलेज ऑफ़ आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स पटना से बैचलर ऑफ़ फाइन आर्ट्स किया है| गांधी को समझने में उन्हें थोड़ा वक्त लगाना चाहिए| गांधी पेंटिंग के लिए आसान किरदार नहीं हैं फिर भी उनका प्रयास सराहनीय है | अनंत मिश्र की पेंटिंग में भी यही दिक्कत दिखाई देती है लेकिन गांधी से अलग करके इनकी कलाकृति को देखा जाए तो वह अर्थवान हो उठती है | मिश्र झारखंड के बोकारो से हैं | अनिल बाल पटना फाइन आर्ट्स कॉलेज के पढ़े हैं| इनकी पेंटिंग में गांधी दिखते हैं| अनिल ने गाँधी और पर्यावरण के बीच संबंध तलाशने की कोशिश की है, जो सही है | महात्मा गांधी हमेंशा प्रकृति के साथ एकात्म स्थापित करते रहे|उमेश कुमार की कलाकृति भी इस सन्दर्भ में महत्वपूर्ण है| उमेश कुमार गांधी की प्रकृति को लेकर जो चिंताएं थीं उन्हीं को रूपाकार दे रहे हैं| पानी और साफ़ वातावरण| प्राकृतिक रूप से उपलब्ध सामग्रियों के संरक्षण पर गांधी बल देते रहे लेकिन हमने प्रकृति का इतना दोहन किया कि आज पानी ख़रीद कर पीना पड़ता है | उमेश कुमार ने बताया था कि इस कलाकृति को इस प्रदर्शिनी के लिए ही बनाया था| दिलीप कुमार शर्मा ने मानवीय करुणा को चित्रित किया है | नरेंद्र पाल सिंह अब वरिष्ठ कलाकार हो चुके हैं | लंबे समय से कला की दुनिया में धमक रही है | अर्से बाद मैं उनकी कोई कलाकृति देख रहा हूं| 'सफ़ेद सत्याग्रह' वाराणसी प्रदर्शनी में शामिल थी| उनकी कला बदल गयी है , शैली भी बदल गयी है | गौर से देखने पर इसमें गांधी दर्शन होता है | एक फ्रेम में बकरी है, दूसरे फ्रेम में गांधी का आश्रम जीवन की सादगी हैं | इस तरह इस कलाकृति में कई फ्रेम हैं, कुछ न कुछ कहते हुए-दिखलाते हुए | शीर्षक पर हम अटक जाते हैं सत्याग्रह के सफ़ेद होने का क्या मतलब हो सकता है| अजय नारायण की कलाकृति और उसके शीर्षक में साम्य दिखता है | 'गांधीवादी दर्शन के धागे' यही शीर्षक है, जो कि सार्थक है| राजेश चांद हिंसा, अहिंसा, शांति, ,अशांति को रूपायित करते हुए दिख रहे हैं| रविंद्र के दास मेरे बिहार के पसंदीदा कलाकारों में रहे हैं| उनकी कला-सक्रियता जीवन के किसी मोड़ धीमी या कम नहीं हुई है| रविंद्र के कला संघर्षों से मैं प्रेरित होता रहा हूं | एक लंबे अर्से से उनके काम को देखने का अवसर मुझे नहीं मिला लेकिन फेसबुक के मार्फ़त उनकी कुछ पेंटिंग्स देखने का मौका इधर मिला| उनका भी शिल्प लगता है बदल गया है | 'गांधी यूनिवर्स' उनकी कलाकृति है जो वाराणसी कला-प्रदर्शनी में शामिल की गयी थी| इस कलाकृति को देखने में जो आनंद है, वर्णन में नहीं है फिर भी बताना जरुरी है उनके कैनवस का बैकग्राउंड ऐक्रेलिक हरा है जो ज्यादा चटक नहीं है लेकिन आँखों को शुकुन देता है| इस बैकग्राउंड के ऊपर गाँधी का बस्ट है, मूर्तिशिल्पीय शैली में नहीं है, पेंटिंग ही है | चिरपरिचित चश्में के पीछे गांधी की खुशनुमा आंखें है जो हमें प्यार से देख रही हैं| पेंटिंग यहाँ ख़त्म नहीं होती हालांकि पेंटिंग का सबसे महत्वपूर्ण अंश आँखे ही हैं | चरखा है, किसान है, हल है, हलवाहा है , पेड़-पौधे और भी कई इमेजेज| बिहार के कलाकारों में कैनवस और ऐक्रेलिक रंग प्रचलित है| पटना आर्ट्स कॉलेज का समकालीन कला में योगदान के महत्व को इन कलाकारों के काम से समझा जा सकता है| सचिन्द्र नाथ झा और सुजीत के पोद्दार की कलाकृतियां 'सत्याग्रह' और 'चंपारण में ' भी उल्लेखनीय हैं | यहां एक बात साफ़ करने की यह है कि बिहार के कलाकारों का मतलब फिलहाल इतना भर है कि वे पटना फाइन आर्ट्स कॉलेज के पढ़े हैं| अनीता सेठी, असित पटनायक ,दीपा नाथ गांधी के किसी न किसी पहलू को चित्रित करते हैं| सरबजीत बाबरा की कलाकृति 'सत्य की कताई' गांधी पर उत्कृष्ट रचना है | कुंदन कुमार, ए खान ,मनहर कपाड़िया, मीणा बया, नरेश शर्मा, निताशा जैनी, मधुकर राज, नुकारजु पाइला, प्रभीण्डर सिंह लाल, अशोक कुमार, राजेश एकनाथ पाटिल, रामचंद्र पोकले, रीना सिंह , संजीब गोगोई, सरोज कुमार , सत्य विजय सिंह, शैलेश बी ओ और कुमार रंजन की भी गांधी-केंद्रित कलाकृतियां इस प्रदर्शनी में शामिल थीं | इनमें से कइयों की कलाकृतियां अलग से उल्लेख की मांग करती हैं, मसलन, संजीब गोगोई की कलाकृति 'एकला चोलो रे | ' लेकिन गांधी अकेले चलने में भरोसा नहीं करते थे | पहले वे लोगों को चलने के लिए प्रेरित करते और बिना किसी के इंतज़ार के चल पड़ते, पीछे-पीछे हुजूम लग जाता | कला का विकास एक दिन में नहीं होता | कई परंपराएं कई आंदोलन कई विचार मिलकर समकालीन कला का निर्माण करते हैं | कला-सामग्रियां अपनी जगह पर महत्वपूर्ण हैं लेकिन जरुरी नहीं है कि कलाकार की अपनी कला-दृष्टि गांधी की कला-दृष्टि से मेल खाती हो लेकिन गांधी के व्यक्तित्व और दर्शन से किसी कलाकार का कोई मतभेद नहीं हो सकता| प्रत्येक कलाकार की अपनी कला महत्वपूर्ण है, उसपर टिप्पणी अनावश्यक है| उनकी कला गांधी और उनके जीवन को चित्रित कराती हैं| भारतीय कला इस बात का प्रमाण है कि सत्य और अहिंसा और मानवीयता से इस दुनिया का निर्माण होता है| फिर भी गांधी पर काम करते वक्त और सचेत रहने की शायद आवश्यकता है| एक कमी इस प्रदर्शिनी में खलती है - दक्षिण भारतीय कलाकार और मुस्लिम कलाकार इस प्रदर्शिनी से अनुपस्थित हैं| क्यूरेटर आर के सिंह ने सफाई दी कि किसी भेद-भाव के मन में ऐसा नहीं हुआ है | यह संयोग रहा होगा कि उस समय मुस्लमान कलाकार मिले नहीं होंगे | आर एन सिंह धर्म-निरपेक्षता में विश्वास करते है | पटना संग्रहालय कला-प्रदर्शनी के सारे कलाकार बनारस वाली कलाप्रदर्शनी में शामिल नहीं किये गए ? आर एन सिंह कहते हैं की गांधी केंद्रित कई कलाकृतिया बिक चुकी थी और उन कलाकारों ने कोई दूसरी कलाकृति बना के दी नहीं इसलिए इस प्रदर्शनी शामिल नहीं किये जा सकगे | आर एन सिंह मानते है कि बनारस कला भवन में हुए प्रदर्शनी के कुछ कलाकारों को गांधी के बारे में और सोच-विचाए करना चाहिए| पटना और वाराणसी की गांधी-केंद्रित कला-प्रदर्शनियों को ले कर कुछ सवाल उठे जिनका समुचित उत्तर इनके संयोजक राम नवल सिंह ही दे सकते थे ; उनसे हुई बात चीत का एक संक्षिप्त अंश प्रस्तुत है : प्रश्न : गांधी-केंद्रित दोनों ही कला-प्रदर्शनियों में युसूफ के अलावा कोई मुसलमान कलाकार शामिल नहीं किया गया है | क्या यह सोच-समझकर किया गया है? आज के भारत का मुसलमान कलाकार गांधी के बारे में क्या सोचता है , उसकी कलाकृति के माध्यम से देखना समझना दिलचस्प होता |
उत्तर: आप ठीक कह रहे हैं | मैंने इस तरह से सोचा ही नहीं | कला की दुनिया में सांप्रदायिक सोच होती ही नहीं है | प्रदर्शनियों के संयोजन के समय जो कलाकार मिलते गए और उनका काम पसंद आता गया मैं शामिल करता गया | इसके पीछे कोई भेदभाव वाली बात नहीं है | बल्कि मैं आपको आश्वस्त करता हूं कि आगे मैं समुचित ध्यान रखूंगा |
प्रश्न : पटना प्रदर्शनी में आपने जितने कलाकारों को शामिल किया था, उनमें से लगभग आधे कलाकारों को वाराणसी की कला-प्रदर्शनी में शामिल नहीं किया ?
उत्तर: दरअसल जिन कलाकारों की बात आप कर रहे हैं उनकी कलाकृतियां बिक चुकी थीं और उन्होंने गांधी कोई काम किया नहीं था इसलिए स्वाभाविक था कि वे शामिल नहीं हो सकते थे | वाराणसी प्रदर्शनी के वक्त कुछ नए कलाकार मिले जिनके पास गांधी-विषयक काम थे और मैंने उनको शामिल कर लिया |
प्रश्न: मुझे लगता है कि अधिकांश कलाकारों को जो इन दोनों प्रदर्शनियों में शामिल हुए गांधी को और गहरायी से समझने की कोशिश करनी चाहिए थी ?
उत्तर : मैं आपसे सहमत हूं | नन्दलाल बोस , जैमिनी रॉय, राम किंकर बैज की पीढ़ी और उनके बाद की पीढ़ियां जिस तरह अपने आप को गांधी और उनके दर्शन से जोड़ते हैं (जुड़ते हैं) आज के कलाकार भावनात्मक स्तर पर गांधी ही क्या किसी भी विचारधारा से नहीं जुड़ते| कला और बाज़ार का रिश्ता कलाकारों पर वज़नी है |
प्रश्न: महात्मा गाँधी के 150 वें जन्मदिन पर ललित कला अकादमी की भी प्रदर्शनी आयोजित हुई लेकिन उसमें
नंदलाल बोस , जैमिनी रॉय, राम किंकर बैज, एम एफ हुसैन सरीखे भारतीय मास्टर्स कलाकारों की कलाकृतियां उसकी क्यूरेटर उमा नायर ने शामिल नहीं किया है ?
उत्तर: इसके बारे में मैं कुछ कह नहीं कह सकता | उन्होंने मुझसे उस प्रदर्शनी के लिए गाँधी-केंद्रित कलाकृतियां मांगीं और मैंने लगभग 100 कलाकृतियां देकर उनका सहयोग किया था |
ललित कला अकादमी महात्मा गाँधी के 150 वें जन्मवर्ष के समय पीछे कैसे रहती | अकादमी ने भी बापू शीर्षक से एक प्रदर्शनी का आयोजन रविंद्र भवन की कलादीर्घाओं में आयोजित किया | गांधी पर यह प्रदर्शनी प्रोग्रेसिव आर्ट गैलरी के बिहार संग्रहालय और बनारस हिन्दू युनीवर्सिटी के भारत कला भवन की कला-प्रदर्शनियों से बड़ी थी | लेकिन इसका थीम उन दोनों कला -प्रदर्शनियों के थीम पर ही था -कलाकारों की नज़र से , मोहनदास करमचंद गांधी | सुपरिचित कला-समीक्षक उमा नायर को क्यूरेटर बनाया गया | इस प्रदर्शनी में, बताया गया है कि अधिकांश कलाकृतियां प्रोग्रेसिव आर्ट गैलरी से ली गयीं | प्रोग्रेसिव आर्ट गैलरी की भारत कला भवन में प्रदर्शित 76 कलाकृतियों में से 49 कलाकृतियां यहां शामिल की गयीं| दरअसल ललित कला अकादमी की गांधी केंद्रित प्रदर्शनी में कलाकृतियों के तीन खंड बनाये गए थे| पहला खंड प्रोग्रेसिव आर्ट गैलरी की कलाकृतियों का, दूसरा खंड उमा नायर की चुनी हुई कलाकृतियों और मूर्तिशिल्पों का जिनमे राम सुत्तार के मूर्तिशिल्प महत्वपूर्ण हैं, तीसरे खंड में मुंबई के जे जे स्कूल ऑफ़ आर्ट के छात्रों की कलाकृतियां है | दो बातें शुरू में : पहली बात जब थीम एक था , कलाकृतियां वही थीं तो क्यूरेटर भी राम नवल सिंह को ही बनाया जाना चाहिए था; उत्तम पचारने, अध्यक्ष, ललितकला अकादमी, ने कैटलॉग के अपने अध्यक्षीय संबोधन में प्रोग्रेसिव आर्ट गैलरी के राम नवल सिंह का इसके लिए आभार व्यक्त किया है कि उन्होंने इस प्रदर्शनी के लिए गाँधी केंद्रित अच्छी कलाकृतियों को देकर सहयोग किया; दूसरी बात राम सुतार को छोड़ कर किसी भी वेटरन की कलाकृतियां उमा नायर ने इस प्रदर्शनी में शामिल नहीं किया | खैर, अकादमी की अपनी चाहत | ललित कला की इस प्रदर्शनी का विशेष आकर्षण प्रसिद्ध मूर्तिशिल्पी राम सुतार के मूर्तिशिल्प थे | राम सुतार कहते हैं , " जब मैं किसी आकृति को, ऐतिहासिक, राजनीतिक या आध्यात्मिक , को मूर्तिशिल्प में ढालता हूँ उसके शाश्वत तत्वों को पकड़ने की कोशिश करता हूँ | मैं चरित्र के सौंदर्य और चारित्रिक सामर्थ्य को समझने की कोशिश करता हूँ | " इसी समझ की वजह से राम सुतार गांधी को उनके समूचे आध्यात्मिक और चारित्रिक सौंदर्य के साथ मूर्तिशिल्प में ढाल पाते हैं, ढाल दिया है| राम सुतार एक ऐसे मूर्तिकार हैं, जिन्हें पत्थरों से इनसान गढ़ने का अनोखा हुनर है | 19 फरवरी 1925 को महाराष्ट्र के धूलिया जिले में एक गरीब बढ़ई परिवार में जन्मे राम सुतार बहुत छोटी उम्र से मूर्तियां गढ़ने लगे थे। इस दौरान महात्मा गांधी को गढ़ना उन्हें विशेष रूप से प्रिय रहा। स्कूल के दिनों में ही उन्होंने सबसे पहले मुस्कुराते चेहरे वाले गांधी को उकेरा था। सर जे जे स्कूल आफ आर्ट से विधिवत प्रशिक्षित राम सुतार को पत्थर और संगमरमर से बुत तराशने में विशेष रूप से महारत मिली। हालांकि कांस्य में भी उन्होंने कुछ बहुत प्रसिद्ध प्रतिमाएं गढ़ी हैं। सरल व्यक्तित्व के मृदुभाषी राम सुतार ने 1950 के दशक में पुरातत्व विभाग के लिए काम किया और अजंता एवं एलोरा की गुफाओं की बहुत सी मूर्तियों को उनके मूल प्रारूप में वापिस लाने का कठिन कार्य किया। पांचवे दशक के अंतिम वर्षों में वह कुछ समय सूचना और प्रसारण मंत्रालय से जुड़े और फिर स्वतंत्र रूप से मूर्तियां गढ़ने लगे।उनकी बनाई महात्मा गांधी की प्रतिमा उनकी सबसे चर्चित कलाकृतियों में से एक है और भारत सरकार ने गांधी शताब्दी समारोहों के अंतर्गत इस प्रतिमा की अनुकृति रूस, ब्रिटेन, मलेशिया, फ्रांस, इटली, अर्जेंटीना, बारबाडोस सहित बहुत से देशों को उपहार स्वरूप दी है। इसी तरह की एक प्रतिमा उन्होंने दिल्ली में प्रगति मैदान में 1972 के अन्तरराष्ट्रीय व्यापार मेले के लिए बनाई थी जो अब इसका स्थायी भाग बन चुकी है। दिल्ली के पटेल चौक पर गोविंद वल्लभ पंत की 10 फुट ऊंची कांसे की प्रतिमा भी उनके रचनात्मक कौशल की गवाह है। राम सुतार की सधी उंगलियों ने पत्थर, इस्पात, कांसे से बहुत से इनसानों को आकार दिया है, जो देश के विभिन्न शहरों में मशहूर स्थानों में स्थापित हैं। पिछले 40 वर्ष में वह 50 से अधिक स्मारक प्रतिमाओं का निर्माण कर चुके हैं।मूर्ति के निर्माण की प्रक्रिया के बारे में राम सुतार बतलाते रहते हैं कि किसी भी आकार की प्रतिमा बनाने के लिए छोटे आकार की प्रतिमा बनाई जाती है और व्यक्ति के चेहरे- मोहरे, चलने, बात करने के ढंग और पहनावे के आधार पर उनके व्यक्तित्व का अंदाजा लगाकर उसे उसके अनुरूप आकार दिया जाता है। वे यह भी कहते हैं कि किसी व्यक्ति को हूबहू पत्थर या किसी धातु में ढालना इससे कहीं ज्यादा मुश्किल काम है क्योंकि नयन नक्श, पहनावे, नख शिख में जरा सा फेरबदल पूरी प्रतिमा का स्वरूप बदल सकता है। गांधी के 150 वे जन्मदिन पर आयोजित अकादमी की प्रदर्शनी में राम सुतार के चार मूर्तियां शामिल की गयी थीं |गिगी स्कारिआ का आर्काइवल कागज़ पर डिजिटल प्रिंट का फोटोग्राफ के बारे में जानने से पहले गांधी के दांडी मार्च (नमक सत्याग्रह ) के बारे में जानना जरुरी है | दिल्ली के सरदार पटेल मार्ग और तीनमूर्ति मार्ग के तिराहे पर (दिल्ली में राष्ट्पति भवन के बगल में ) प्रसिद्ध मूर्तिशिल्पी देवी प्रसाद चौधुरी का एक मूर्तिशिल्प है जिसका नाम है। ग्यारह मूर्ति |' ग्यारह मूर्तियों में सबसे आगे छड़ी के सहारे चलते हुए महात्मा गांधी हैं और उनके पीछे चलते हुए लोग जिनमें से दस की मूर्तियां बनाई गयी हैं | यह मूर्तिशिल्प 1930 के दांडी मार्च को दर्शाता है जिसका नेतृत्व महात्मा गांधी ने किया था | जब भी हम इस तिराहे से गुजरते हैं दांडी मार्च की याद तजा हो जाती है जिसके बारे में हमने किताबों में पढ़ी है | इसीसे प्रेरित होकर गिगी ने दांडी मार्च का एक समकालीन टेक्स्ट 'सबसे पहले कौन पथ से विचलित हुआ' बनाया है | गिगी की कलाकृति में भी ग्यारह मूर्तियां हैं और सबसे आगे महात्मा गांधी हैं लेकिन उनके पीछे के दस लोग दस उल्टी दिशाओं में चल रहे हैं | हमारे समय का यह विरोधाभाष है | मुंबई के जेजे स्कूल ऑफ़ आर्ट्स के 30 छात्र कलाकारों की कलाकृतियां भी इस प्रदर्शनी का हिस्सा थीं | अद्वैत घटक का कागज़ पर चारकोल से बनायीं गयी गांधी की आकृति उनकी फ़कीरी को दिखाती है | चर्चिल को गांधी की फ़कीरी की शक्ति से बड़ा डर था | आनदमोय बनर्जी का वुडकट भी आकर्षक है ; इसका शीर्षक है 'वह कौन है | ' किरमिजी रंग की पृष्ठिका पर चरखा की विशालता और अनेक छोटी-छोटी चीज़ें अर्पणा कौर की कलाकृति गांधी की रचनात्मकता को प्रतिबिंबित कराती है | अर्पणा कौर का सूफ़ीवाद हमेशा आकर्षक लगता है और यह भी लगता है कि अपने समय को समझने का जरिया सूफ़ीवाद भी है | दत्तात्रय आप्टे का जिंक निक्षारण माध्यम में 'आप अकेले नहीं ' भी शानदार कला है | हेमवती गुहा का काष्ठचित्र 'नेता' सीधे गाँधी से संबंधित तो नहीं लगता है लेकिन इसे गाँधी दर्शन से जोड़कर देखा जा सकता है | लौहधातु में ढले माधब दास की 'यात्रा ' एक प्रसंशनीय कृति है | माध्यम भी गज़ब होता है | सही माध्यम से बड़ा से बड़ा वक्तव्य संभव किया जा सकता है | तंतु के मूर्तिशिल्प में एक मनुष्य को विश्व को गतिमान करते दिखाया गया है और शीर्षक दिया गया है 'गांधी ' | निमेष पिल्लै की कलाकृति सुंदर र है और अर्थगर्भित भी | निवेदिता झा के गांधी पत्थर में तराशे गए हैं | कई अनेक अच्छी कलाकृतियां इस प्रदर्शनी में शामिल थीं | गांधी पर यह एक सफल प्रदर्शनी साबित हुई थी | संदर्भ : एल टी जी आर्ट गैलरी, प्रोग्रेसिव आर्ट गैलरी और ललित कला अकादमी की सूची-पुस्तिकाएं और राम नवल सिंह से बातचीत |
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