मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013

कुछ जज्बात मेरे भी-3

1.
मैं उससे बातें करती हूँ जब वो मेरे पास होती है
मेरे उद्वेलित होने पर पास आकर धीरे से
थाम लेती है मुझे
नहीं किरोलती मेरे दुःख को
नहीं करती खिलवाड़ मेरी भावनाओं से
मेरे दुःख पर हाथ फेरती है
दुखती रग पर नहीं
उस सागर से निकलती है
जिसमे मैं डूबना नहीं चाहती
मुझे हर डर से बचाती है
नहीं चाहिए मुझे वो भीड़
जो मुझे अकेला कर देता है
मैं खुश हूँ
अपनी तन्हाई से साया जो है वो मेरा
नहीं चाहिए वो भीड़
जहाँ मैं हो जाती हूँ अकेली
हाँ मेरी तन्हाई ही अब मेरा साया है
और मैं उससे ही बातें करती हूँ हमेशा

2.
जहाँ विश्वास हो वहां चमत्कार होता है
जहाँ चमत्कार होने लगे वहां से विश्वास पलायित होने लगता है
चमत्कार आँखों से दीखता है विश्वास दिल से
हम कहते हैं दिल की सुनो

3.
अनजाने में ही मैंने उससे पूछा
तुम्हे कहाँ जाना है भाई
उसने कहा , जहाँ की कोई खबर नहीं
मैंने फिर पूछा , तुम जानते हो किसी को वहां
उसने कहा , हाँ , जानता हूँ न
उन काले पत्थरों को जानता हूँ
उनमें सुलगती आग को जानता हूँ
उस आग में झुलसे बचपन को जानता हूँ
उनसे जले युवाओं के सब्र को जानता हूँ
जानता हूँ न ,क्यों नहीं जानता
उनकी उम्मीदों को जानता हूँ
उनके प्रतिरोध को जानता हूँ
क्या आप मुझे जानते हो
उसने मुझसे पूछा
और मै निरुत्तर हो गई           - अनीता  

 

सोमवार, 4 फ़रवरी 2013

कुछ जज्बात मेरे भी-2

1.
प्रासंगिक तो कुछ भी न था
फिर भी एक प्रसंग सा बन गया
नाउम्मीद तो कुछ भी न था
पर कहीं एक उम्मीद सी जगी
अन्याय के समंदर में
न्याय की एक शिला जरुर थी
वह शिला अहिल्या नहीं थी
जो राम के पावन स्पर्श के इंतजार में
जमी रही समंदर लहरों में भी
हाँ शायद वो डूबने से बचने का जरिया थी
आज वह शिला कितनी अहिल्याओं को देगा सहारा
और क्या बचा पायेगा लहरों से ?
क्यों ?
जी ,क्योंकि शिला ,अहिल्या नहीं ,
पर अहिल्या शिला जरुर बना दी जाती हैं
2.
उठो पार्थ गांडीव संभालो
ऐसा ही कहा था कृष्ण तुमने अर्जुन से महाभारत में
कहाँ हो कृष्ण ?
आज महाभारत है
ध्रितराष्ट्र भी हैं जो संजय की आँखों से देखते है
हाँ कोरवों की सेना पूरी है संख्या में
पांडव भी अपनी गिनती के हैं जो धर्मराज से वचनबद्ध हैं
अश्वथामा, द्रोण गुरु ,मजबूर है
कृष्ण नहीं हैं आज
पर भीष्म पितामह आज भी हैं पर
प्रतिज्ञाबद्ध ।
3.
रिश्तों की कसमसाहट को मैंने भी महसूस किया है
कभी वो रिश्ता हमें अपने साये में महफूज़ रखता है
कभी हमें निर्वस्त्र कर देता है
हाँ रिश्ते आजकल वस्त्र की तरह होते जा रहे हैं
पर मैले होने पर बेदाग नहीं हो सकते वस्त्र की तरह
जब हमें उसकी कसमसाहट से घुटन होने लगती है
हम उसका दायरा बढ़ाने के बजाय बदल देते हैं वस्त्र की तरह
और डाल लेते हैं अपने ऊपर मज़बूरी का एक मोटा जामा
खुद को बचाए रखने के लिए
क्योंकि रिश्तों की गर्माहट कम होने लगी है
4.
आकृतियाँ बनती हैं बिगड़ने के लिए
आकृति को बिगड़ने से बचाना है
अपनी मनचाही आकृति हम खुद बनाते हैं
और उसमे अनचाहा रंग भर देते हैं
एक आकृति मैंने भी बनाई थी
उसमे सारे रंग भर दिए थे
तभी वह सफ़ेद हो गया
कहते हैं सारे रंगों का मेल
एक ऐसा रंग देता है
जो बेरंग होता है
अब आकृतियाँ तो बनती हैं
पर उसमे रंग भरने से डरती हूँ
5.
निस्तब्ध थी वो रात
बेचारगी से भरी थी दुनिया
मन का खुद से हो रहा था प्रतिरोध
और भस्म हो रहा था विश्वास
कहीं किसी ओर नहीं था कोई प्रतिकार
सन्नाटे चीर कर आई एक चीत्कार
और हो गयी फिर कोई और एक ममी में तब्दील     -अनीता 

कुछ जज्बात मेरे भी-1

1
जज्बात दिल में न हों
तब उसकी यादें ,न तो मीठी होती है न कड़वी
फिर उसकी दिल में क्या जगह
पर उसे दिल से निकाल कर
दिमाग के किसी कोने में बंद कर देना चाहिए
ताकि दिल को कोई तकलीफ न हो ,
पर दिमाग में वह एक सोच की तरह हो
वह सोच जो हमें कुछ ताकीद करें
2
लगता है एक पल कोई रिश्ता बनाने में
मुश्किलें आती हैं मगर दूर तलक उसे ले जाने में
वादा करते तो हैं ता:उम्र उसे निभाने का
टूट जाते हैं मगर रिश्ते जाने अनजाने में
आता क्यूँ है कोई अपना बन कर दिल के करीब
जब होती है मुश्किल एक गलती भी भुलाने में
खैर अच्छा किया तोड़ दिया भ्रम मेरा
सोचती थी की हूँ अच्छी रिश्ते निभाने में
टूटे रिश्ते तो चुभते तो होंगे उन्हें
मेरा दिल अकेला ही तो ऐसा नहीं ज़माने में

किसी रोज एक क्षण गुजर जाता
शायद आता
पर आता तो सही
छोड़ जाता कुछ मधुर यादें
पर ,आता तो सही

दो जानने वाले अजनबी
अनजान रहे
पाता ही न चला
साथ रहकर भी अकेले रहे
सानिध्य की तलाश में
इक दूजे को दूंदते हुए
खो गए एक दूजे में नहीं

वक्त के कुछ पलों की गुजारिश है
मुश्किलों के साथ चलने की हमें ख्वाहिश है
जिंदगी हम कुछ इस तरह से जीते हैं कि
हर पल हौसलों की अजमाइश
चलकर गिरना ,गिरकर संभल जाना है
क्या फिर से गिरने की गुंजाइश है
हाँ जीवन की यह भी एक नुमाइश है       -अनीता