मातृभाषा जैसी कोई और दूसरी चीज़ नहीं है जो इंसान के जीवन को सबसे अधिक सवांरती है और प्रभावित भी करती है लेकिन कई मौके ऐसे आते हैं जहाँ लगता है कि वह संवाद में अड़चन बन सकती है मगर ऐसा होता नहीं है | अवसर थाकोच्चि में आयोजित क्रिथि अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक और लेखक महोत्सव , 2018 में कविता पढ़ने के लिए केरल सरकार का आमंत्रण| बहुभाषी कविता-पाठ के सत्र में छह कवि थे उड़िया से केदार मिश्र , असमिया से कविता कर्माकर , तेलुगु सेकवि याकूब , मलयालम से के आर टोनी, हिंदी-मलयालम से संतोष अलेक्स और हिंदी से अकेले यह लेखक | मलयालम भाषी के आर टोनी केरल की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले शहर त्रिशुर के रहने वाले हैं | वे मूलतः विज्ञानं के छात्रहैं लेकिन कवि हैं और मलयालम भाषा में एम ए किया है, पत्रकारिता की विधिवत पढाई की है | फिलवक्त वे केरल के एक विश्वविद्यालय में प्राध्यापन का कार्य कर रहे हैं | उनके कई कविता संग्रह प्रकाशित हैं और कई पुरस्कारों सेसम्मानित भी हुए हैं| प्रमुख समकालीन मलयाली कवि
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महोत्सव के आयोजन और प्रबंध में कहीं कोई अव्यवस्था नहीं थी | लेखकों की देखभाल का जिम्मा युवा छात्रों के जिम्मे था और छात्रों ने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभायी | हवाई अड्डे पर उतरने , होटल में ठहरने , सत्रों में शिरकत करने और फिर हवाई अड्डे पर वापसी तक उन युवा छात्रों ने हमारी देखभाल की | वे सब अनुशासित ,विनम्र और लेखकों के प्रति आदर भाव रखने वाले हैं |
कोच्चि कई बार जाना हुआ है| केरल राज्य का यह शहर पानियों अर्थात बैकवाटर्स पर बसा हुआ है | जिधर निग़ाह डालिये उधर ही पानी-पानी | पानियों के बीच की धरती पर बसावट है | दरअसल कोच्चि और एर्नाकुलम दो जुड़वां शहर हैं | इनका प्राचीन नाम कोचीन है जहां पुर्तगाल से चलकर समुन्द्र के रास्ते होते हुए वास्को-डी-गामा भारत की धरती पर उतरा था| कोच्चि के जल-संसाधन को देखकर मुझे अक्सर अमेरिका के बे-एरिया की याद आ जाती है | अमेरिका के पूर्वी समुंद्री तट पर प्रशांत महासागर का पानी दो पहाड़ियों के बीच से होकर केलिफ़ोर्निआ प्रान्त में प्रवेश करता है और काफी अंदर तक चला गया है | इन दोनों पहाड़ियों को एक पुल जोड़ता है जो गोल्डन गेट के नाम विश्वविख्यात है | इस बे-एरिया के बैकवाटर्स पर केलिफ़ोर्निआ प्रान्त के कई ज़िले बसे हुए हैं , मसलन, सैन फ्रैंसिस्को , सैन मेटिओ, सैन होज़े इत्यादि | कोच्चि भी अमेरिका के बे-एरिया के जैसा ही बसा है लेकिन उतना तरतीब यहां नहीं दिखता जितना सैन फ्रैंसिस्को में दिखता है | जब भी कोच्चि गया हूं वहां के पानियों और अरब सागर की ओर मैं खिंचा चला जाता हूं | बैकवाटर्स केरल के दूसरे शहरों में भी है | पानी के कई संस्मरण हैं मसलन लगभग दस फीट चौड़ी और कोसों लम्बी सड़कनुमा द्वीपों पर बसावट है लोगों की जो डोंगियों से पानी को पार करते हैं मुख्य धरती तक आने के लिए | गनीमत है कि इन डोंगियों में डीज़ल से चलने वाले मोटर लगे हुए हैं |
कोच्चि कई बार जाना हुआ है| केरल राज्य का यह शहर पानियों अर्थात बैकवाटर्स पर बसा हुआ है | जिधर निग़ाह डालिये उधर ही पानी-पानी | पानियों के बीच की धरती पर बसावट है | दरअसल कोच्चि और एर्नाकुलम दो जुड़वां शहर हैं | इनका प्राचीन नाम कोचीन है जहां पुर्तगाल से चलकर समुन्द्र के रास्ते होते हुए वास्को-डी-गामा भारत की धरती पर उतरा था| कोच्चि के जल-संसाधन को देखकर मुझे अक्सर अमेरिका के बे-एरिया की याद आ जाती है | अमेरिका के पूर्वी समुंद्री तट पर प्रशांत महासागर का पानी दो पहाड़ियों के बीच से होकर केलिफ़ोर्निआ प्रान्त में प्रवेश करता है और काफी अंदर तक चला गया है | इन दोनों पहाड़ियों को एक पुल जोड़ता है जो गोल्डन गेट के नाम विश्वविख्यात है | इस बे-एरिया के बैकवाटर्स पर केलिफ़ोर्निआ प्रान्त के कई ज़िले बसे हुए हैं , मसलन, सैन फ्रैंसिस्को , सैन मेटिओ, सैन होज़े इत्यादि | कोच्चि भी अमेरिका के बे-एरिया के जैसा ही बसा है लेकिन उतना तरतीब यहां नहीं दिखता जितना सैन फ्रैंसिस्को में दिखता है | जब भी कोच्चि गया हूं वहां के पानियों और अरब सागर की ओर मैं खिंचा चला जाता हूं | बैकवाटर्स केरल के दूसरे शहरों में भी है | पानी के कई संस्मरण हैं मसलन लगभग दस फीट चौड़ी और कोसों लम्बी सड़कनुमा द्वीपों पर बसावट है लोगों की जो डोंगियों से पानी को पार करते हैं मुख्य धरती तक आने के लिए | गनीमत है कि इन डोंगियों में डीज़ल से चलने वाले मोटर लगे हुए हैं |
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मंच पर बैठे हुए यह देख कर परेशान हुआ जा सकता था कि श्रोताओं में सब के सब मलयाली भाषी हैं जो शायद थोड़ी-बहुत भी हिंदी नहीं जानते हैं और हिंदी ही क्यों वे शायद असमिया, तेलुगु, उड़िया भी नहीं जानते होगें | समस्या यहथी कि जिनको कविताएं सुनाने जा रहे हैं वो तो हिंदी जानते नहीं फिर कविता संप्रेषित कैसे होगी | संतोष अलेक्स ने जो कि मलयालम भाषी हैं लेकिन हिंदी भी जानते हैं और दोनों ही भाषाओँ में कविता करते हैं और हिंदी से मलयालमऔर मलयालम से हिंदी में अनेक अनुवाद किये हैं, मेरी कुछ कविताओं का मलयालम में अनुवाद किया है लेकिन अलेक्स ने ऐन वक्त मेरी कविताओं के मलयालम अनुवाद पढ़ने से मना कर दिया इस तर्क के साथ कि वे किसी भी कवि कीकविता का मलयालम अनुवाद नहीं पढ़ रहे हैं | मैं सचमुच फंस चुका था | केदार, कविता और याकूब अपनी कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद लेकर आये थे | अलेक्स और टोनी मलयालम भाषी हैं | मन मसोस कर रह गया| फिर मैंने श्रोताओं सेक्षमा मांगी और अंग्रेजी में कहा , "आप लोग भाषा की दिक़्क़त की वज़ह से मेरी कविता का आस्वाद नहीं ले पाएंगे लेकिन मेरी भाषा हिंदी के शब्दों की ध्वनियों को आप महसूस कर सकेंगे| " और मैंने अपनी गद्य कविताओं को छंद और लयके साथ पढ़ गया | तालियां खूब बजीं | तालिओं के बीच मैंने महसूस किया कि हम एक हैं और हमारी इस एकता के एहसास को कोई तोड़ नहीं सकता है, भाषा भी नहीं| मलयालीभाषी श्रोताओं की इस उदारता से मैं निहाल हो गया | पर खुदपर मन खिजता रहा कि हमने दूसरी भाषाएं क्यों नहीं सीखी | कई साल पहले मित्र पी मुरलीधरन ने मुझे मलयालम भाषा सीखाने की कोशिश की थी लेकिन उनकी कोशिश पर मैंने पानी फेर दिया था | वे अनथक प्रयास करते रहे और मैं बेमनकोशिश करता रहा और अंततः वह भाषा नहीं सीख सका | एक मित्र ने कोशिश की कि मैं तमिळ सिख लूँ लेकिन मैं वह भी नहीं सीख पाया| भाषा न सीख पाने के पीछे का कारण शायद मेरा बिहारी होना रहा होगा जिनमें दूसरों की भाषा नसीखने का जज़्बा रहता है, इसमें वे अपना गौरव महसूस करते हैं | जब हम स्कूल में थे तो वहां त्रिभाषा फार्मूला पर कोई ज़ोर नहीं था | संग में एक भाषा थी संस्कृत जो आगे चलकर पीछे छूट गयी | आज कल त्रिभाषा फार्मूले पर ज़ोर हैखासकर नवोदय विद्यालयों में | मैं तो कहूंगा कि मौका मिले तो भाषाएं ज़रूर सीखनी चाहिए | बल्कि मौका खोज-खोज कर दूसरी भाषा सीखनी चाहिए| उत्तर भारत में हिंदी के अलावे कोई और भाषा सीखने की ललक नहीं के बराबर है| ग्रामीणइलाकों के लोगों को छोड़ दीजिये शहर और महानगरों के हिन्दीभाषी लोग भी दूसरी भाषाएं सीखने में रूचि नहीं दिखाते | दक्षिण के चारों राज्यों के लोग उधर की सभी प्रमुख मसलन मलयालम, तमिल, कन्नड़ और तेलुगु शायद बोल औरसमझ लेते हैं |
महोत्सव कोच्चि के एक तीन तरफ़ से पानी से घिरे द्वीप पर स्थित बोलगट्टी पैलेस में हुआ | पूरे पैलेस को पांच सभागारों में विभाजित किया गया था और हर सभागार का नाम मलयालम के किसी न किसी प्रख्यात कवि- साहित्यकार के नाम पर रखा गया था मसलन करूर सभागार करूर नील कांत पिल्लई के नामपर, , एम् पी पॉल सभागार एम पी पॉल के नाम पर , थाकाझी सभागार थाकाझी शिवशंकर पिल्लई के नाम पर , पोनकुन्नम और ललिथाम्बिका अनथर्जनम | करूर नीलकंठ पिल्लई लघुकथा लेखक थे और वे साहित्य प्रवर्तक सहकार संघम (लेखक सहकारिता संघ ) के संस्थापकों में से एक हैं | करूर का नाम केरल केघर-घर में लिया जाता है | एम पी पॉल मलयालम में आधुनिक आलोचना के जनक माने जाते हैं | केरल में मलयालम साहित्य में नवजागरण आंदोलन में जनभावना के समावेशी बनाने में उनका योगदान है| साहित्य प्रवर्तक सहकार संघम की स्थापना में अन्य मलयालम लेखकों में पॉल भी शामिल थे | पॉल इसके पहलेअध्यक्ष थे |थाकाझी शिवशंकर पिल्लई मलयालम उपन्यासकार और लघुकथाकार थे | उन्हें भारत के सर्वोच्य साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ से सम्मानित किया गया था | पोनकुन्नम वक्र्की और ललिथाम् बिका अनथर्जनम बड़े लेखकों में थे| इस तरह अपने लेखमें के नाम पर सभागारों के नाम रखकर लेखकों का सम्मान बढ़ाया |
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