शनिवार, 13 अक्तूबर 2018




कविता पढ़ने की विधा है या बोलने की 


कविता पढ़ने की विधा है या बोलने की | जब छपने की सुविधा नहीं थी तब कविता बोल कर पढ़ी जाती थी और याद रखी जाती थी | पीढ़ी दर  पीढ़ी कविता को स्मृतियों के सहारे बचायी गयी | विडंबना देखिए की छपाई की बेहतर सुविधा के साथ-साथ कविता को पढ़ने की विधा बना देने की कोशिश हुई है और इस कोशिश में रचनाकार सफल भी हो गए हैं | कविता लिखी गई, पत्र-पत्रिकाओं में और पुस्तक रूप में छाप गयी और लोगों को पढ़ने के लिए पाठक को कविता परोस दी गयी | लेकिन कविता का सौंदर्य दरअसल निखरता है जब वह बोल कर पढ़ी जाती है | कविता लिखते समय कवि के संवेदना में जितनी कविता-सामग्री होती है वह सब के सब लिखित कविता में अभिव्यंजित हो नहीं पाती | कवि के भीतर के क्रन्दन उल्लास भावनाएं भाव-भंगिमाएं भाषा में अभिव्यक्त होने से वंचित रह जाते हैं | कई प्रकार की ध्वनियां और उद्वेग , मौन, दो शब्दों के बीच की  खली जगह कवि अपने पाठ से  भरता है | कविता के सारे अवयव कवि की बोल कर पढ़ी गयी कविता में उभरती है जब वह सचमुच कविता ठीक से पढ़ना जानता है | कविता पढ़ने की कला तब निखरती जब एक कवि को कविता पढ़ने के बहुत सारे अवसर मिलते हैं | कविता पढ़ते-पढ़ते वह अपनी छंदमुक्त कविता के भीतर के लय और छंद को पकड़ पाता है, दो शब्दों के बीच के मौन को पकड़ पाता है | अपनी सांस के उतार-चढ़ाव को साध पाता है | कविता पढ़ना एक साधना है जिसका कहीं विधिवत प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है जैसे संस्कृत वैदिक श्लोकों के उच्चारण का प्रशिक्षण दिया जाता है | कविता को कवि को खुद साधना पड़ता है जिसके लिए जरूरी है कि उसे कविता पढ़ने का अवसर बार-बार मिले | ऐसे अवसर साहित्य अकादेमी, हिंदी अकादेमी, रजा फाउंडेशन या ज्ञानपीठ सरीखे संस्थान नहीं दे सकते | ऐसे अवसर खुद के प्रयास से ही मिल सकते हैं | कविओं के समूह लिखावट लगातार कविता पाठ के ऐसे अवसर की तलाश कर रहा है और अपने से जुड़े मित्र कवियों को कविता-पाठ  का अवसर दे रहा है | इसके बड़े कविता-अभियानों में कैंपस में कविता है जहाँ कवि आ रहे है और कविता पढ़ रहे हैं | लिखावट ने देशबंधु, आत्माराम सनातनधर्म, राजधानी महाविद्यालयों में और दिल्ली विश्वविद्यालय के दक्षिण परिसर में एक के बाद एक कविता-पाठ आयोजित किया है और अन्य महाविद्यालयों में ऐसे काव्य-पाठ आयोजित करेगा | लोगों के बीच जाकर कविता पढ़ने का आनंद ही अलग है | कई कवि बार बार कविता पढ़ रहे है नतीजतन उनके वाचन में अप्रत्याशित अंतर महसूस किया गया है | देशबंधु महाविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर और कवि और आलोचक मनोज कुमार सिंह के कविता वाचन  में जो निखार आया है  उससे इस बात की पुष्टि होती है कि वाचन कितना ज़रूरी है | आज के अनेक चर्चित युवा कविओं के वाचन भयानक रूप से दोषपूर्ण हैं |  

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