रविवार, 21 अक्तूबर 2012

मिथिलेश श्रीवास्तव -

हम में से हर एक का एक स्थायी पता है
लोग कहते हैं मैं जहाँ रहता नहीं हूँ
जहाँ मेरी चिठियाँ आती नहीं हैं
दादा या पिता के नाम से जहाँ मुझे जानते हैं लोग

अपना ही घर ढूढ़ने के लिए जहाँ लेनी पड़ती है मदद दूसरों की
पुश्तैनी जायदाद बेचने की गरज से ही जहाँ जाना हो पाता है
पिता को दो गज जमीं दिल्ली के बिजली शव दाह-गृह में मिली थी
वह पता मेरा स्थायी पता कैसे हो सकता है

लेकिन हम में से हर एक का एक स्थायी पता है
जहाँ से हम उजड़े थे

एक वर्तमान पता है जहाँ रहकर स्थायी पते को याद करते है
स्थायी पते की तलाश में बदलते रहते हैं वर्तमान पते
इस तरह स्थायी पते का अहसास कहीं गुम हो जाता है
एक दिन मुझे लिखना पड़ा कि मेरा वर्तमान पता ही स्थायी पता है
पुलिस इस बात से सहमत नहीं हुई
वर्तमान पता बदल जाने पर वह मुझे कहाँ खोजेगी
हम अब घोर वर्तमान में जी रहे हैं

तुम से क्या छिपाना तुम कभी लौटो
वर्तमान पतों की इन्ही कड़ियों में मेरे कहीं होने का सुराग मिलेगा
तुम भी कहती थीं जहाँ तुम हो वही मेरा स्थायी पता है
मालूम नहीं तुम किस रोशनी पर सवार हो किस अँधेरे में गुम

लोकतांत्रिक देशों की पुलिस
वर्तमान पते पर रहनेवाले लोगों से स्थायी पते मांगती है
जिसका कोई पता नहीं पुलिस उसे संदिग्ध मानती है

बच्चे से पुलिस उसका पता पूछती है
बच्चा तो अपनी मां की गोद में छुप जाता है
वही उसका स्थायी पता है वर्तमान पता है.

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