शनिवार, 24 नवंबर 2018


असहमति की ज़गह बरकरार रहनी चाहिए 

एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया के प्रायोजन   में  संगीत के कार्यक्रम आयोजित करने वाली संस्था स्पिक- मैके ने दिल्ली में 17 नवंबर 2018 को कर्नाटक संगीत के संगीतज्ञ  टी एम कृष्णा के संगीत कार्यक्रम का आयोजन रखा था लेकिन अंतिम घड़ी में एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया  अपने प्रायोजन से मुकर गई जिसकी वजह से स्पिक-मैके को यह कार्यक्रम रद्द करना पड़ा |   टी एम कृष्णा के संगीत कार्यक्रम को अचानक रद्द करने का कारण बताया गया था ट्वीटर -हैण्डलरों  के ट्वीट को जो लगातार कृष्णा के  खिलाफ आग उगल रहे थे| कंसर्ट के रद्द होने के कारणों में सबसे अहम भूमिका रही हिंदुत्व ट्रोलरों की जिन्होनें कृष्णा के ख़िलाफ़ तरह-तरह के दोषारोपण किये जिनमें से एक शहरी नक्सल कहना भी है | इन ट्वीटरों की धमकी भरी भाषा से एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया के अधिकारी अनुमानतः या तो डर गए या डरा दिए गए| नमूने के तौर पर एक ट्वीट देखा जा सकता है जिसमें  कृष्णा की छवि को धूमिल करने की कोशिश की गयी है | ट्वीट  दिलचस्प है, और भयानक भी  ,"क्या आप जानते हैं वह (कृष्णा) प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी से जबरदस्त घृणा करता है, हिन्दुओं, भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय  स्वयं संघ  से असहमति जताता है| करदाताताओं का पैसा और एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया के कर्मचारियों का समय उसके ऊपर क्यों बर्बाद होने दिया जाए | " इसी तरह के ट्वीट्स ट्रोल हैंडलरों ने चलाया और  एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया के अधिकारी संभवतः  दबाव में आ गए | कृष्णा ने तब सार्वजनिक रूप से अपील की, "मुझे 17  नवंबर, 2018  (जिस दिन स्पिक-मैके ने कार्यक्रम रखा था ) को दिल्ली में  कहीं भी मंच दीजिये मैं आऊंगा और गाऊंगा | हम इस तरह की धमकियों से डर नहीं सकते हैं | "  रामचंद्र गुहा ने भाजपाइयों के इस दुष्कृत्य  की निंदा इन शब्दों में की,"एक बड़े संगीतकार को राष्ट्रीय राजधानी में अपनी कला के प्रदर्शन से रोकना और उसे  बाधित करना असहिष्णुता ही नहीं बल्कि बर्बरता है |"  ट्रोल हैंडलरों को जब पता चला की कृष्णा दिल्ली में गाने वाले हैं तो उन्होंने कृष्णा को गाली देना शुरू किया और मांग करना शुरू किया की कृष्णा के कॉन्सर्ट को रद्द किया जाए | ट्रोल-हैंडलर्स कृष्णा के संगीत के बारे में शायद ही कुछ जानते होंगे, उन्हें सिर्फ यह मालूम है कि कृष्णा हिंदुत्व और मोदी सरकार के आलोचक हैं | कृष्णा के पक्ष में आख़िर में दिल्ली की आप सरकार खड़ी  हुई |आप सरकार ने इस घटना को लोगों के सरकार के ख़िलाफ़ बोलने की आज़ादी पर कुठाराघात बताया और इसकी तुलना फांसीवाद से किया |  इसमें कोई संदेह नहीं है कि मोदी सरकार जब से आयी है अभिव्यक्ति और बोलने की आज़ादी पर संकट लगातार मडराता रहा है | लोकतंत्र में आलोचना का अधिकार भारतीय संविधान देता है लेकिन मोदी सरकार इस अधिकार को सिमित करने की लगातार कोशिश कर रही है | बिना सरकार के परोक्ष या अपरोक्ष समर्थन के ट्रोल -हैंडलर्स सरकार के खिलाफ बोलने वाले आलोचकों पर आकर्मण कर नहीं सकते | भय का माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है | 

ख़ौफ़ पैदा करने वालों को याद रहे कि पक्की और चमकदार सड़कें, फ्लाईओवरों , मेट्रो, स्टेडियमों, हवाई अड्डों, प्रतिमाओं इत्यादि    जैसे निर्माण अगर विकास के विश्वसनीय मानदंड होते तो दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शिला दीक्षित दिल्ली के विधानसभा  चुनाव  में कभी भी नहीं हारतीं और न कांग्रेस पार्टी को पराजय का सामना करना पड़ा होता| शाइनिंग इंडिया भी विकास का मानदंड नहीं हो सकता है, यदि ऐसा होता तो अटल विहारी वाजपेयी जैसे व्यक्ति जो कमोबेस सबको स्वीकार्य थे, की सरकार कांग्रेस के हाथों 2004 में कभी नहीं पराजित होती | देश में फांसीवादी स्तिथियां पैदा करने से हिंदुस्तान में सत्ता में बने रहना किसी के लिए भी असंभव है | आम लोगों को क्या चाहिए, परिवार पालने के लिए एक ओट, पेट भरने के लिए दो जून का भोजन, ओट और भोजन जुटाने के लिए आठ घंटे का काम, बच्चों के लिए स्कूल और कॉलेज, बीमारी  का इलाज और इन सब के ऊपर बोलने की आज़ादी जो उनको  भारत का संविधान सुनिश्चित रूप से देता है| अगर कोई घर मांगे, नौकरी मांगे, जीने का अधिकार मांगे, बोलने का अधिकार मांगे और यह सब नहीं मिले तो विरोध प्रदर्शन करे, सरकार की आलोचना करे , सरकार और व्यवस्था से मत-भिन्नता प्रकट करे     और आप उसके पीछे ट्रोल हैंडलरों को लगा दें, तो कैसी स्तिथि बनेगी | और आप किस-किस के पीछे इन ट्रोल-हैंडलर्स को सक्रिय करेंगे | यह देश आज विरोध प्रदर्शनों से भरा पड़ा है | किसानों के ख़िलाफ़ ये ट्रोल हैंडलर्स सक्रीय होगें जो सोशल मीडिया जानते ही नहीं हैं और अगर जानते भी होगें तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता |  आम लोगों के बोलने  की आज़ादी का उदाहरण देखना है तो आप उत्तर भारत के गावों, कस्बों और छोटे शहरों की पान और चाय की दुकानों पर देख सकते हैं | भले ही खाना नहीं खाया हो, चाय की चुस्की लेते हुए लोग सारे संसार की राजनीति - मोदी से ट्रम्प तक- बतिया जाते हैं | घर और भोजन से भी अधिक ज़रूरी है बोलने की आज़ादी | इंसान जैसी भी स्तिथि में हो वह बोलना चाहता है और जब बोलने की आज़ादी पर कोई आघात करता है तो वह बर्दाश्त नहीं कर पाता है | बोलने की आज़ादी पर आघात का परिणाम था 1977 में दुर्गा की उपाधि से विभूषित इंदिरा गाँधी की करारी हार | कहते हैं नोटबंदी के दौरान लोगों का बड़े पैमाने पर रोज़गार छीन गया |   वादे जो 1914 के चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने किए थे मोदी सरकार ने आजतक पूरे  नहीं किए और अमित शाह ने उन वादों को चुनावी जुमला कह कर टाल  दिया| झूठ , जुमलों  और तमाम परेशानियों का विरोध तो होना ही है |  लेकिन एक बात तो तय है कि भारत की जनता अपने नागरिक अधिकारों पर किसी भी तरह के आघात को सहन नहीं कर सकती है, बोलने की आज़ादी पर विशेषकर | बोलने की आज़ादी आलोचना की आज़ादी है और जिसके अनेक प्रारूप हैं, कला, संगीत, नृत्य, लोक कला, साहित्य, संस्कृति इत्यादि | बोलने के  किसी भी आज़ादी के प्रारूप  पर आघात, परोक्ष या अपरोक्ष नियंत्रण या पाबंदी लोगों की सहन शक्ति का परिक्षण है | दिल्ली में कर्नाटक संगीत के संगीतकार टी एम कृष्णा का  कंसर्ट स्पिक मकै फाउंडेशन ने एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया के प्रयोजन में आयोजित किया था | ऐन वक़्त यह कंसर्ट प्रायोजित करने से  एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया ने मना  कर दिया, नतीजतन      स्पिक मकै फाउंडेशन को यह कंसर्ट रद्द करना पड़ा | इस पर राजनितिक घमासान शुरू हुआ | कहा गया कि कंसर्ट रद्द करवाने के पीछे मोदी सरकार के हाथ हैं क्योंकि टी एम कृष्णा के विचार मार्क्सवादी हैं और उनका संगीत उसी विचारधरा की पोषक है | यह कहना निरर्थक नहीं होगा कि जो कला जनता का विशुद्ध मनोरंजन करे, उसका बौद्धिक विकास करे और उसकी चेतना को जागृत करे और उसमें परिवर्तन की आकांक्षा जगा दे वही सामाजिक और जन -कला है | उसी कला में आम आदमी अपनी आकांक्षाओं को पूरा होते हुए देखता है उसीमें उसके सपने साकार होते हैं उसी में अपनी लड़ाई लड़े जाते हुए देखता है, वही कला उसकी बोलने की आजादी की रक्षा करता है, उसे संबल देती है | ऐसी कला राजनीति से दूर नहीं हो सकती है, विचारों से दूर नहीं हो सकती है, ऐसा कलाकार विचारों से दूर नहीं हो सकता है | टी एम् कृष्णा अपनी संगीत कला के माध्यम से अपने एक्टिविज्म को छुपाते नहीं हैं |वे कहते हैं कि जैसे ही आप प्रश्न पूछने लगते हैं और प्रश्न पूछना जारी रखते हैं आपको संदेह से देखा जाने लगता है | वे कहते हैं कि कला का राजनीतिकरण होना चाहिए | ऐसा कह के कृष्णा बोलने की आज़ादी की ही पैरवी करते हैं |    एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया के कंसर्ट के रद्द होने की वजह सोशल मीडिया पर कृष्णा के ख़िलाफ़ दुष्प्रचार बताया गया है | कृष्णा की आज़ादी पर आघात पहुंचाया मोदी सरकार और भारतीय  जनता पार्टी  के ट्रोल-हैंडलरों ने दुष्प्रचार से , जो एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया  पर प्रयोजन वापस लेने के लिए दबाव बनाने में सफल रहे| कृष्णा की आज़ादी पर हुए हमले को दिल्ली की प्रबुद्ध जनता ने नापसंद किया और उनकी इस भावना को दिल्ली की आप पार्टी की सरकार ने कृष्णा के कंसर्ट को सरकारी आयोजन बना के सम्मान किया | यहाँ दर्ज़ करना समीचीन होगा कि  दिल्ली की आप सरकार द्वारा गार्डन ऑफ़ फाइव सेंसिस में  आयोजित कंसर्ट में मार तमाम  लोगों ने शिरकत किया|       

ट्रोल और ट्रोल-हैंडलर हिंदी भाषा के शब्द नहीं हैं लेकिन अब हिंदी में  काफ़ी प्रचलित हो गए हैं | जबसे मोदी सरकार केंद्र में आयी है और एक के बाद एक राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकारें बनी  हैं  आए  दिन इन शब्दों से वास्ता पड़ने लगा है | कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी समर्थित ट्रोल-हैंडलर्स काफ़ी आक्रामक हैं और इनकी आक्रामकता को संबल इस बात से मिलता है कि इनको प्रधान मंत्री मोदी फॉलो करते हैं | लीजिए एक और शब्द फॉलो इस कड़ी में जुड़ गया |  ये तीनों नए शब्द एक नए माध्यम के हैं जिसे हम सोशल मीडिया के नाम से जानने लगे हैं | इन ट्रोल-हैंडलरों की आक्रामकता की तुलना यूरोप के पापाराजी फोटो-पत्रकारों से कर सकते हैं जो जिसके पीछे पड़  जाएं, उसका जीना हराम कर दें | पापाराजी पीछे-पीछे, और उसका शिकार आगे-आगे | पापराजिओं के पीछा करने के कारण लोगों की जान भी चली जाती है | ट्रोल हैंडलर्स जानलेवा हमले  करते हैं | वे कोई वैचारिक हमला नहीं करते हैं, छिछोरापन करते हैं और अपने  आक्रामक   छिछोरेपन से एक ऐसी विचारशून्यता पैदा करते हैं कि आप सोच भी नहीं सकते कि आख़िर उस छिछोरेपन का मुक़ाबला कैसे करें | वे एक गुरिल्ला युद्ध छेड़ते हैं तकनीक के सहारे और विचारवान  लोगों को डराने की कोशिश करते हैं | डराना ही उनका मकसद है | एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया के अधिकारी डर गए क्योंकि वे सरकार के मुलाज़िम हैं और मुलाजिमों का काम है सरकार से डरना क्योंकि उन्हें लोगों, संविधान, नागरिक अधिकार, आज़ादी से कोई मतलब नहीं होता, मतलब होता है तो सरकार के हुक्म बजाना | मोदी सरकार की कोई एक उपलब्धि है तो वह है की इसने हुक्म बजा ने वाले अधिकारियों की फ़ौज़  साढ़े चार वर्षों में खड़ी कर दी है |    


ट्रोल की अभद्र टिप्पणियों और धमकाने वाले तेवर से कृष्णा सरीखे  कलाकारों, संगीतकारों और  साहित्यकारों भारत क्या दुनिया के किसी भी हिस्से में डराया-धमकाया नहीं जा सकता | भारत में प्रतिरोध की एक लम्बी परंपरा रही है | अन्याय, दमन, आक्रमण , हिंसा, पाखण्ड के ख़िलाफ़ भारतीय जनमानस हमेंशा उठ खड़ा हुआ है | कबीर सहित सारा संत साहित्य प्रतिरोध का साहित्य है और यह साहित्य गांवों में बसने वाले भारतीयों की जान-भाषा में रचा-बसा है| अपनी बोली-बानी के साहित्य से ग्रामीण जीवन संचालित होता है और उनकी न्याय-व्यवस्था भी इन्हीं परंपराओं पर आधारित है| कला और साहित्य का कोई भी रूप कोई भी शैली प्रतिरोध और नकार पैदा करती है | शहरी लोग थोड़ी देर के लिए भयातुर हो भी जाएं ग्रामीण लोग एक पल के लिए भी भय नहीं खाते और हमेंशा न्याय के पक्ष में खड़े रहते हैं | उनके लंपटपन में भी एक अक्खड़पन रहता है और वही अक्खड़पन उनकी भीतरी ताकत है | डराने की जो नयी तरक़ीब  तकनीक के आधार पर भारतीय जनता पार्टी के ट्रॉलरों ने अख़्तियार किया है, उससे कलाकार-साहित्यकार कहाँ डरेंगे, बल्कि एक मामूली-सा आदमी भी नहीं डरेगा  | सरकार पोषित संस्थाएं डर जाएंगी क्योंकि इन संस्थाओं को गुलाम बनाने की कोशिश भाजपा की सरकार जब से आयी है केंद्र में तब से कर रही है | लेकिन दिल्ली की सरकार और दिल्ली की जनता इन ट्रोलरों से न डरी न डरती है | भाजपा के ट्रोलरों  के दबाव में एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया डर  गयी और टी एस कृष्णा के संगीत के कार्यक्रम को रद्द कर दिया लेकिन दिल्ली  की आप सरकार ने वह कार्यक्रम उसी दिन दिल्ली में कराया|   ये ट्रोलर कृष्णा के राजनितिक विचारों से सहमत नहीं हैं और इनके लिए असहमति कोई मायने नहीं रखता | कृष्णा मोदी सरकार की आलोचना करते हैं जो ट्रोलरों को बिलकुल सहनीय नहीं है | कृष्णा के संगीत में जो समावेशी संदेश है वह भी इन ट्रोलरों  को पसंद नहीं है| अगर सरकार, किसी की भी हो सही काम नहीं करती है, तो उसकी आलोचना तो होगी ही, होनी ही चाहिए | सरकार सोने और मौज करने के लिए नहीं होती है, काम करने के लिए होती है | मोदी सरकार के साढ़े चार वर्ष हो गए और हेर मोर्चे पर नाकामी का सामना कर रही है            |  हिंदी के महान कवि रघुवीर सहाय की एक कविता की एक मशहूर पंक्ति है 'पांच बरस बहुत बरस होते हैं | ' पांच बरस में जो सरकार नाकाम रहती है वह सालों  सत्ता में रह कर भी कुछ नहीं कर सकती है |  
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