सोमवार, 4 फ़रवरी 2013

कुछ जज्बात मेरे भी-1

1
जज्बात दिल में न हों
तब उसकी यादें ,न तो मीठी होती है न कड़वी
फिर उसकी दिल में क्या जगह
पर उसे दिल से निकाल कर
दिमाग के किसी कोने में बंद कर देना चाहिए
ताकि दिल को कोई तकलीफ न हो ,
पर दिमाग में वह एक सोच की तरह हो
वह सोच जो हमें कुछ ताकीद करें
2
लगता है एक पल कोई रिश्ता बनाने में
मुश्किलें आती हैं मगर दूर तलक उसे ले जाने में
वादा करते तो हैं ता:उम्र उसे निभाने का
टूट जाते हैं मगर रिश्ते जाने अनजाने में
आता क्यूँ है कोई अपना बन कर दिल के करीब
जब होती है मुश्किल एक गलती भी भुलाने में
खैर अच्छा किया तोड़ दिया भ्रम मेरा
सोचती थी की हूँ अच्छी रिश्ते निभाने में
टूटे रिश्ते तो चुभते तो होंगे उन्हें
मेरा दिल अकेला ही तो ऐसा नहीं ज़माने में

किसी रोज एक क्षण गुजर जाता
शायद आता
पर आता तो सही
छोड़ जाता कुछ मधुर यादें
पर ,आता तो सही

दो जानने वाले अजनबी
अनजान रहे
पाता ही न चला
साथ रहकर भी अकेले रहे
सानिध्य की तलाश में
इक दूजे को दूंदते हुए
खो गए एक दूजे में नहीं

वक्त के कुछ पलों की गुजारिश है
मुश्किलों के साथ चलने की हमें ख्वाहिश है
जिंदगी हम कुछ इस तरह से जीते हैं कि
हर पल हौसलों की अजमाइश
चलकर गिरना ,गिरकर संभल जाना है
क्या फिर से गिरने की गुंजाइश है
हाँ जीवन की यह भी एक नुमाइश है       -अनीता 

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